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TAGRAMMARGIRRORISMMAR
श्री धर्म प्रवर्तन सार. १॥सही० ॥ अनंत दुःख दातार ए ॥सही। ॥ करे कर्मी | " जीवने ए पुष्ट ॥ सही० ॥ ११ ॥ कर्म पुष्ट शुन्नाशुन्न ए 5॥ सही० ॥ शुन्नाशुन्न श्राश्रव पुन्य पाप ॥ सही० ॥ मि-६ है थ्यात्व पांच नेद कर्वा ॥ सही०॥ अवतनो आगे कहुं ७
ताप ॥ सही० ॥ १२ ॥ ताप कहेतां शीतळ वळे ॥ सही० ॥ ए अजूत अचरीज वात ॥ सही० ॥ ज्ञान शीतलज्ञान नावमां ॥ सही० ॥ उपयोगी तीहां सुख ॥ सही० ॥१३॥ ढाळ दशमी संपूर्ण ॥
॥ ढाल अगीयारमी ॥ ॥ तोरण था क्युं चलेरे-ए देशी ॥ मिथ्यात्व इष्ट इस्युं कछुरे ॥ वळी कयु गुणगण सखुणा ॥ प्रश्न कर्यु रुहुँनयंरे ॥ उत्तर करूं परमाण स. खुणा ॥ शंका पमे तो फरी पुडीनेर । निःसंक था गुणगेह सखुणा ॥ ए आंकणी ॥ १॥ प्रथम मिथ्यात्व उष्टनोरे ॥ अर्थ कहुं थिर चित्त ॥ स ॥ त्यार पड़ी गुणगणनोरे ॥ कहेशं उपयोग रीत ॥ स० ॥ संका ॥२॥ मिथ्यात्व उतां नव पूरवीरे ॥ कह्या अज्ञानी ग्रंथे साख ॥ २०॥ व्यवहारे यथारथ संयतीरे । कह्या असंयती नगवैए दाख ॥ स॥ संका ॥ ३॥ नर्क तिर्यंच गति आउखुरे मिथ्यात्व विण न बंधाय ॥ स ॥ स्त्री नपुसक दोय वेदनोरे ॥ मिथ्यात्व
गणे बंध थाय ।। स० ॥ संका० ॥ ४ ॥ अनंतुं दुःख नॐ रके कछुरे ॥ खेत्रवेदना परमाधामी आपे ॥ स० ॥ वली , लढी मरवानुं तीहारे ॥पूर्वनव वेरनीए बापे ॥स ॥ १
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