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________________ GranarranoranoramaraGranaras श्री धर्म प्रवर्तन सार. त्यादि घणुं शुं कहीयेरे ॥ थोडं को घणुं जाणो चतुर ॥ स०॥ ज्ञान शीतलनुं कहेण मानजोरे ॥ मिथ्यात्व ब्रमिक १ 9 ज्युं धंतुर ॥ स ॥ संका० १५ ॥ ढाल अगीयारमी सपूर्ण ॥ ॥ ढाल बारमी ॥ ॥ चतुर नर सामायक नय धारो ॥ ए देशी ॥ चतुर नर अव्रत बीमां टाळो॥ षट काय षट इंद्रीनो इंद्री ए बार अव्रत लाळो ॥ चतुर ॥ अवतः ॥ ए श्राकणी ॥१॥ आतम घर मेलातहे घटमां ॥ असंख्य प्रदे-6 शनी रचना ॥ अनंत गुणपर्याये नरपुर ॥ सरखा बराबर सिद्धना ॥१०॥ अवतः ॥२॥ए बार बीमांमां थश्ने श्रावे॥ नीरंतर चोर रागद्वेष ॥ श्रातम गुण रीद्धि सै जावे ॥ तिहां चेतन करे कर्म क्लेष ॥ च० ॥ अवतः ॥३॥पांच इंद्रिने मन नोद्रि ॥ तेनो विषय शुन्नाशुन्न कहीए ॥ राग द्वेषए अशुद्ध परिणति ॥ पुद्गल संगे लहीए ॥च० ॥ अवतः ॥ ४॥पृथवि पाणी अग्मिने वायु ॥ वनस्पतिने त्रस॥ ए सर्वे १ अप्रत सेवनथी ॥ कर्मबंध रागद्वषवस ॥च॥ अवत०॥॥ ए ) बार अतथी अलगा थश्न॥ अंतर गत घटमांही॥चिदानंद घन नजरे नीरखो ॥ करो शुद्ध उपयोग त्यांही ॥ च० ॥ अतः ॥ ६ ॥ एम नाव विरतीये स्वरूप रमणगत ॥ अंतर मुहर्तमांही ॥ रागद्वेष मोहादी हणीने ॥ सहीये ६ केवळ अरिहंत त्यांही ॥ च ॥अवतः ॥ ७॥ एम अ-3 9 व्रतने टाळो जवीजन ॥ आश्रव अलगो होवे ॥ ज्ञान , शीतल गुणगत परिणामे ॥ कर्म मेल सब धोवे ॥ च० ॥ (१४४) Goraroorrearrirearera Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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