SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ISRO AGRAMMIGRAMGARGIMS श्री धर्म प्रवर्तन सार. श्लोक. उत्तम आत्म चिंता च, मोद चिंता च मध्यमा ॥ अधम काम चिंताय; परचिंताऽधमाधमा ॥१॥ अर्थ-उत्तम आत्म चिंताच. कहेतां जे आत्मस्वरु5 पनी चिंता एटले चितवणा करवी. गवेषणा करवी, ते चिंतवणा बाह्यवृत्तिमा नथी त्यारे क्या . तो अंतरवृत्तिए & तिहां पण मनयोगस्थिरता पामे त्यारे चिंतवणा शक्ति । आवे, एम करता करतां अन्यासे करीने, मन स्थिर थाय 6 अने क्षय उपशम नावनी सहाय मले तो तद्गत स्वरुपे । ज्ञानज्योति उद्योत प्रकाश अनुन्नव जुवने करे ए अनुन्नव जुवन केQ . तो, सामो नित प्रमुख आमो पमदो नथी १ घणो मोटो सपाट बगीचो एवो खुल्लो आकाश, जेम सूर्यना तेजे करी प्रकाशित होय ए द्रष्टांते अंतरगत अनुनव जुवनमां ज्ञानज्योतिए प्रकाशित, अति उद्योत कर्ता एवं अनुन्नव जूवन डे तिहां चिंतवणा अनुन्नव बळे अपूर्व १ प्रगटे एटले ध्यानगत नेदाने, एक पढ़ी बीजो एम वि. चाररूप अनुनव धारा तत्वनो निर्णय करवारुप, परिपाटि १ चाले तेमां पृच्छा करवानी तर्क पण करवी रहे नही. एम अशंकित निरधार वस्तुने विषे वस्तुपणानो करवानुं एज एक अनुन्नव जुवन डे वळी अनुन्नवनी धोम केवी डे के £ जेम रेलवेनी धोम डे तेम अनुन्नवनी एटले तत्वनी ग-१ वेषणानी धोम ; अरुपि आत्माने दृष्टिगोचर करवानुं , हे एक एही अपूर्व स्थान बे. ए अनुन्नवना नावने जाण CIRe@EOOPERMIREONOMINovBOUS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy