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श्री धर्म प्रवर्तन सार.
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१ वाना अर्थे श्हां त्रण सवैया लखीए बीए तेथी हे तत्वबोधना अर्थि नाश्यो तमे अनुन्नवनो खप करजो... ..
सवैया एकतीसा मनसो अचळ रहे ज्ञान ध्यान तदे तदे. रहे स्थिर थश्ने अनुन्नव सो रंग है पांचु इंजीथी चळे चेतना इहां न मळे मळे अनुजव स्थळे सही सहज नाव है। अनुलवे अति घणुं धारणा सो एक अj अनुनय गये गणुं अंतद करण दै लाव्यो पागे आवे नही आवे मनस्थिर तही रहे न उपाधि महीं शिव खुलो खेत है (१) अनंत गुणोमां आगु ज्ञानने दर्शन जागुं अनुनव थाय लागु स्वरूप रमण है तिदण धारा न टूटे मोदनो खजानो खुटे शुनाशुल बंध बूटे सो अशुद्धवान है शुको स्थापन सही देखे परत्यक्ष अदी मन जोग स्थिर तदी खुल्लो खेल तान है असंकित वात एदी गति रेखवेल तेही. थोभाव्यो सो थोने सही अंत: सो स्थिर है(२) 6 सहज स्वनावे आवे जडतासें खसी जावे।
अनेक चदु मिलावे एसो घटंतर है NRAHMAN MAgarat
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