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sardar GARAMETERIORAGreAGrag
आतम ग्यान ध्यान सो आतम धर्मवान परम पद सांन सो देख्यो अनुभव है सित गया आणे छे अमृत नद नाणे अनुजवी सो जाणे जे एन आवे वचन है वंदना हमारी सदा रीकसु आवसो जदा ज्ञान शीतळ तदा मित्र प्रमोदित है (३) __ एम आत्म चिंता एटले श्रात्मस्वरुपनी चिंतवणा करवी, वस्तुगते वस्तुपणानो निरधार करवो ते अनुन्नव
गम्य अने अनुलवनी जेने प्राप्ती थइ ते उत्तम कहेतां . पुरुषोत्तम के मोहचिंताच, कहेतां जे पुरुषे, सप्रविनाग
वहेंची आत्मस्वरूपचिंतवी, अनुनवीने ग्रंथिन्नेदपूर्वक समकित प्रगट कर्यु , यथार्थ श्रद्धा करी बे, वस्तुने विषे वस्तुपणानो निरधार थयो , वळी संसारने असार जाणी, बोमीने, अणगार थया ले ते उतां पोतानुं वीर्य तद्गत सहज नावमा वृद्धिए स्फूर्णा न पामे; अने परनवे देवलोकादि ऋद्धिनुं पाम, इत्यादि मनोज्ञ नोगनी इच्छा मोहीत थका करे, तेवा पुरुषने मध्यम कहीए; अधम काम चिंताच, कहेतां उपर कयु ए प्रमाणे समकित मूळ सर्व विरति थया , ते उतां कर्मनी विचित्र गति डे, अने उदय महा बळवान , तेथी करीने, कंदर्पने एटल काम चिन्हने उपशम करवानी बुद्धिए, आकरी तपस्या करता है उतां पण न शम्यो अने व्याकुळतानो परानव कीण न थयो ६ sasroGENERACTION
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