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________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. एम करतां कारण पण उदय पूर्वक तेवूज मली आव्युं तेथी करीने लिंगथी ब्रष्ट थया अने स्त्री संगे विषयत्नोग करे, पण समकितनी, छाननी, यथार्थ साबिती ने, गुमाव्यु नथी ६ ते पुरुषने अधम कहीए, कारण के जो ए वेद अग्नि, कर्म क्षीण होवाथी; शांत थाय तो पाळपुनरपि एज नवे संयम है ग्रहण करीने, निरतिचार चारित्र पाळी, तद्गतनावे, वीर्यनी स्फूरणा पामे तो यावत् सिद्धि पण वरे; नहि तो जे गतिनुं आयुष्य बांधे ते गतिमांजाय, पण ए अंते मोक्ष-6 गामी डे, माटे अधमाधम न कह्यो. परचिंता कहेतां पर जे 3 तन, धनादि तेना बे नेद, एक अशुन्न अने बीजी शुन्न है एटले वस्तुगते आत्मा जुदो अने तन, धनादि जुहूँ , तेने जुदं न जाणे अने कायाने जीव समजे, वळी सजन कुंटुंबादि राजऋद्धिने पोतानी समजे, तेना वास्ते पापस्थान सेवे अने परिग्रहने निधान माने. आर्त, रोऽध्याननो ध्याता, वस्तुना स्वरूपनो अजाण, तत्वथी विमुख, रात्रीलोजननो कर्त्ता इत्यादि अशन्न चिंतानो कर्त्ता, ए पहलो Gener@nareneG SearGreGrammarAGARGramBAGROGRGarg नेद कह्यो. १ हवे बीजो शुन्न चिंता, तेना बे नेद, आरोप शुन, अने अणारोप शुन्न, अणारोप शुन तो, सम्यक्ज्ञानीना घेर संनवे, ते शहां न लाधे हवे आरोप शुनना बे नेद @ एक सामान्य, बीजो विशेष सामान्य आरोपित शुन्न तो १ 5 ए के गुरुमहाराजने वांदे वळी सामान्य प्रकारे विनय हे साचवे, जीनबिंबनां दर्शन करे, तीर्थयात्रा करे दिन दुःखी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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