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ની ધર્મ પ્રવર્તન સાર,
FREAMBLRAMPERIONERGre sirag , यांनी अनुकंपा करे इत्यादि ए सामान्य आरोपीत शुननो
प्रथम नेद कह्यो. हवे विशेष आरोपित शुन्न तो एबे के ॐ दुःखगर्जित मोहगनित वैराग्य पामीने, संसार त्याग करी, ( ६ निर्मथथाय, पंचमहाव्रत आदे,चरणसित्तरीअने पोहण श्रादे
करणसित्तरीनो ग्राहक थाय, शक्ति पूर्वक तप करे, पोताना ई क्षय उपशम पूर्वक नणे, गुरुवादिक वझेरानो विनय वैया& वच्च करे, पुन्यने नयु जाणे, परंतु जीहां सुधी पोताना
आत्माने कायाथी जुदो जाएयो, (अनुन्नव्यो) नथी तिहां सुधी ए शुन्नाशुन्न चिंतानो कर्त्ता जम जीव . तेने परचिंता कहिए. धमाधमा कहेतां एम परचिंतानो कर्त्ता ते जीवने अधममां अधम कहीए. कारण के जगवतीजीना पहला शतकना बीजा उद्देशे, नवमा ग्रैवेयकना ग्राहक सर्व विरति साधुने वीर परमात्माए, वळी गणधर महाराजे अर संयति कहीने बोलाव्या , वळी तीहां सुधी जवानी र योग्यता तो मिथ्यात्वी नवी अने अन्नवी बेहुमां पण कही
बे, वळी परने पोतानुं मानवू एज अज्ञान, अने एज मिथ्यात्व , वळी संथारा पोरसिमां पण कयु :3 संयोग मूला जीवेण, पत्ता दुःख परंपरा, ६ ॐ तम्हा संयोग संबंधं, सव्वं तिविहेण वोसिरियं ॥१३॥ है
अर्थः-संयोग कहेता पूर्वकृत कर्मयोगे अने उदय संजोगे जे वस्तु प्राप्त थइ ते वस्तु जीवने पर बे, तेने विषे एकांते ६ पोतापणानी बुद्धि एज दुःखनी परंपरा पामवानुं मूळ कारण PetroPronomist
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