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________________ प्राधा 1२. MOGARAMBHOGORABLEMS PRASAGre GRAMMADLINE WORLD बे. हा! हा! इति खेदे चेतन थश्ने अचेतननी बुद्धि राखे डे, माटे आ श्लोकमां परचिंताना कर्त्ताने अधममां अधम १ L) कह्या, ते यथास्थित . अध्यात्म सार ग्रंथे, श्लोक या निश्चे कलीनानां, क्रियानाति प्रयोजना ॥ व्यवहार दशा स्थानानां, ता एवाति गुणावदा॥१९॥ , g अर्थः-जे मुनीश्वरनुं मन निश्चय पोताना स्वरूपमा १ लिन थयुं अने स्वरूप ओळखाण करी तेमांज रमेले तेवा । ट्र मुनीश्वरने बाह्य व्यवहार प्रमुख क्रिया करवानुं कं प्रयोजन नथी. जेने मोदनी अन्निलाषा डे तेने क्रियानी कां जरुर नथी अने जे ज्ञानदशा पाम्या नथी तेने व्यवहार क्रियानो खप जे. केमके ते थकी शुन्न कर्म उपार्जे. है पण मुक्ति हेतु न थाय. ( १७ ) आवश्यकादि रागेण, वात्सल्यानगवजिरा॥ प्राप्नोति स्वर्ग सौख्यानि न याति परमं पदं ॥४॥ 9 अर्थः-आवश्यकादि रागेण कहेता प्रतिक्रमण प्रमुख क्रियाने विषे अथवा उपवासादि तपने विषे राग . वली , जिनवाणी सनिलवानो राग डे एटले परमात्मा नाषित अथवा परमात्माना मार्ग अनुसारी एटले सूत्र सिद्धांत ग्रंथ प्रकरणादि सांनळवानो राग डे ते सर्वने शुनराग कहीए तें थकी स्वर्गनां सुख पामे पण तेथी परमं पदं (८८). Organgragenge GOOOOKS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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