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________________ अध्यात्म यावीशी. GALLERGAGARIGranard. परमानंदताजी ॥ सुख हो प्रजु सुख ए अनंत अव्याबाध ।। खहरी हो प्रजु लहरी विलास आस्वादताजी ॥४॥अक्षय १ हो प्रनु अक्षय स्थितिये गति सिद्ध ॥ अरूपी हो प्रनु अरूपी वरणादि नही तीहांजी ॥ अगुरु हो प्रनु अगुरु लघु बार लेद ॥ हाणी हो प्रत्न हाणी वृद्धि गुण वृत्ति तीहांजी ॥ ५॥ इत्यादि हो प्रत्न इत्यादि गुण अनंत, धर्म & हो प्रन धर्म गुणगत स्वन्नावएजी ॥ गुण ते हो प्रनल गुण ते पर्याय समुदाय ॥ निन्न हो प्रन्न जिन्न कहीए हेतु उपदेशमांजी ॥६॥ वस्तुये हो प्रत्न वस्तुए अव्य पर्याय॥ ३ गुणनय हो प्रन गुणनय नही सिद्धांतमांजी ॥ प्रदेश हो । प्रल प्रदेश असंख्याता दाख्य॥ तस धन हो प्रन्नु तस घन निवम सिद्धमांजी ॥ ७॥ तेहीज हो प्रत्तु तेही मूरती मटिल जिणंद ॥ उंगणीस हो प्रन उगणीसमा तीरथपतिजी ॥ ज्ञान हो प्रन ज्ञान शीतळ शुद्धन्नाव ॥ पूजाथी हो प्रन पूजाथी नवि लहे सिद्धगतिजी ॥७॥ . संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ २० मुं॥ ॥सांनळजो मुनिसंयम रागे ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत जगत गुरुराया, शुद्ध नयचित्त ठरायारे॥ शुद्ध पर्याय रमण उपयोगे, ध्यान तुरंग नचायारे ॥ मुनिसुव्रत जगत गुरुरायाः ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ निज सत्ता धर्म प्रगट पाया, व्यक्ति गुण पर्यायारे॥ सेहेज , स्वन्नावे दायक लब्धि, अचळ अनंती कहायारे ॥मुनि॥ Beans /G randi GramBAGRAGrdasreGramruare Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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