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________________ BreareBORIES तवन अधि४२. ॥ स्तवन ११ मुं मुनिसुव्रत स्वामीनुं ॥ ॥ढाळ : ली॥ प्रथम गोवाळतणा नवेजी ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत जिन वीसमाजी, पाळे महाव्रत पांच ॥ अव्य नाव दोय नेदशुंजी, तेमां नहीं खळ खांच ॥ नविकजन वंदो ए जगगुरुराय ॥ सेव्यां सिद्ध पद थाय ॥ न. विकजन० ॥ १॥ ए आंकणी ॥ ते दाखं अनुन्नव करीजी, ग्रहजो नविजन सार ॥ साधन ए सम को नहींजी, आ तमने हितकार ॥ नविक० ॥ २॥ प्रथम महाव्रत उच्चरेजी, ५ प्राणातिपात वीरमण ॥ सर्व जीवनुं रक्षण करेजी, न हणे है कोश्ना प्राण ॥ नविकजन ॥ ३॥ बीजुं महाव्रत उच्चरेजी, मृषावाद बीरमण ॥ कुठं वचन बोले नहींजी, ए बाज्य अग्निंतर जाण ॥ नविक० ॥ ४ ॥ त्रीजुं महावत उच्चरेजी, अदत्तादान वीरमण ॥ अण दीवे लेधे नहींजी, सळी दंत सोधन जाण ॥ नविक० ॥ ५ ॥ चोथु महाव्रत उच्चरेजी, करे सर्व स्त्रीनो त्याग ॥ रूप कांति निरखे नहीं जी, अचिंतक विषय अराग ॥ नविकः ॥ ६ ॥ पांचम महाव्रत उच्चरेजी, नवविध परिग्रह त्याग ॥ कोमी पास राखे नहींजी, ए निर्लोनी लीयो वैराग ॥ नविक० ॥ ७ ॥ तुं व्रत ग्रहे नबुजी, रात्रि जोजन परिहार ॥ न करे आ9 हार चल जातनोजी, पचखाण करे चनविहार ॥ नविक०४ ६ ॥ ॥ अव्य वीरतिए मुनितणीजी, दाखी आतम हेत ॥ १ ७) ज्ञान शीतळ करीनाखशुजी, नाव वीरति संकेत ॥ & विक० ॥ ए॥ Panoransexisrore Grandarmera GRAMMARRI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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