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________________ ...तवन मा . ॥ कळश॥ Srawasakarmorang . ध्यायो ध्यायोरे मेंतो मविजिणंदने ध्यायो, लमा 9) दाखी त्यां साधना राखी, ए अजूत ज्ञान सवायो॥ स्थिर उपयोगे तुं कुछयो बुझयो, तीहां अव्य नाव शत्रु हणायो रे ॥ मेंतो मविजिणंदने ध्यायो॥ ए आंकणी ॥ ध्यायो ध्यायो रे ध्यान आयोरे, एक दिन बद्मस्थ कहायो 5 ॥ गाथा ॥१॥ मूळ रूप तीहां तद्वत की, अनुन्नव ज्ञान है संयोग॥ अप्रमत्तादि श्रेणी आरोही, टाल्या उपाधि थोक रोगरे ॥ मेंतो ॥२॥ दायक लब्धि अनंती पाम्या, तेमां है नव श्हां दार्खा ॥ प्रथम वेदक समकित गुणयोगे, क्षायक 6 समकित जा रे ॥ मेंतो० ॥ ३॥ बीजुं क्षायक चारित्र खीg, तीहां मोह उनमूलन कीg ॥ केवळनाण दर्शण थावरण क्षय, केवळनाण दर्शण सीधुं रे ॥ मेंतो० ॥४॥ दानादि लब्धि पांच आवे, त्यां अंतराय कर्म क्ष्य थावे॥ ए साते गण तेरमे साधे, एम नव लब्धि कहावे रे ॥मेंतो० ॥५॥ ए लब्धियें अरिहंत कहीये, त्यांथी सिद्धपद लहीए ॥ एम साधना जे कोश् साधे, तेना दास थ रही. येरे ॥ मेंतो० ॥ ६ ॥ मनुष्य जन्म आज सफळो मार्नु, मन स्थिर घरमां आणुं ॥ ज्ञान शीतळ श्रद्धाए नरीयो, ए शीवपंथ साधन टाणुं रे ॥ मेंतो० ॥ ७॥ है. संपूर्ण सर्व गाथा ५० . ManoranGAR GARAGAGRIG HASKRRIERSPON Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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