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________________ RASALA SonGGROGREAGrammar श्री धर्म प्रवर्तन सार. . १ तेम नावो करी प्रेम ॥ सोनागी० ॥३॥ एक गुणे जिन्न नाखशुरे ॥ अनुक्रमे त्रण अव्य ॥ अधर्म स्थिती हेतु डेरे॥ १ 2 ते जाणीये टाली गर्व ॥ सोनागी० ॥ ४ ॥ जीव पुद्गलने ते दीयेर ॥ वीसामो मनोहार ॥ वाटे पंथी चालतारे ॥ ग्रीष्मकाळे विचार ॥ सोनागी० ॥ ५॥ देखी वद वीसामो है लीयेरे ॥ तेम जीव पुद्गलने तेह ॥ कह्यो स्थिति हेतु श्रध- ६ मास्तिरे ॥ एम समजो गुणगेह ॥ सोनागी ॥६॥ श्राकाश ते अवकाशनोरे ॥ हेतु सवे अव्ये थाय ॥ जीवधजीव रूपी अरूपीरे ॥ आकाश खेत्रे समाय ॥ सोनागी० ॥७॥ काळ हेतु अस्ति अव्यनारे ॥ पर्याय धर्मनी मांही ॥ पूर्व । पर्याय बेदीनेरे ॥ अनिनव उपजे त्यांही ॥ सोलागी॥॥ चोथो गुण त्रणे अव्यनारे ॥ कह्यो कहुं बुं पर्याय ॥ अधर्म चौदराजमारे ॥एक खंध द्रव्यपर्याय ॥ सोनागी० ॥ ए॥ उर्ध्व अधो ति दिकरे ॥ कल्पी कहीए देश ॥ प्रदेश अ-5 संख्याता कह्यारे ॥ लोकाकाश प्रदेशे प्रदेश ॥ सोलागी १॥१०॥ अगुरु लघु परिणतियेरे ॥ गुण वृत्तिनी मांही॥ हानि वृद्धि ग्रंथे कहीरे ॥षट् षट्नेदे त्यांही॥ सोनागी॥११॥ ए पर्याय चार दाखीयारे ॥ अधर्म अव्यना सार॥हवे कहीशु ए आकाशनारे ॥ पर्याय नेद ए चार ॥ सोनागो० ॥ १२ ॥ ६) एक खंध द्रव्य पजवारे ॥ लोकालोक प्रमाण ॥ सोका काश देश कीजीयेरे ॥ प्रदेश अनंता वखाण ॥ सोलागी . ॥ १३ ॥ प्रदेश लोकाकाशे कह्यारे ॥ असंख्याता ग्रंथे , हे साख ॥ अगुरू लघु परिणतीयेरे ॥ गुण वृत्तिए राख ॥ ६ Progress reOBERane Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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