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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. 9 सोनागी० ॥ १४ ॥ हवे कहुँ काळ अव्यनारे ॥ चार नेदं ।
पर्याय ॥ अतित जे अनंतो गयोरे ॥ तेनो नेम न बंधाय ॥ सोनागी० ॥ १५॥ अनागत अनंतो रह्योरे ॥ एक समय वर्तमान ॥ वर्तमान अतितमारे ॥ अनागत वर्तमान ॥
सोनागी० ॥ १६ ॥ चोथो अगुरू लघु कह्योरे ॥ एम नेद है ६ पर्याय ॥ काळ अव्य अबतो कह्योरे॥ आरोप नैगम थाय ॥ 6
सोलागी० ॥ १७॥ अजिव अरूपी दाखीयारे॥श्रा ढाळ- से मांत्रण द्रव्य ॥ धर्मास्ति पूर्वे कटोरे ॥ अजिव अरूपी ए 6 सर्व ॥ सोनागी० ॥ १७ ॥ हवे रूपी प्रगलनेरे ॥ ना वचन रसाळ ॥ ज्ञान शीतल तेने जाणतां रे ॥ बोध पामे 6 के बाल ॥ सोनागी० ॥ १५ ॥ ढाल उही संपुर्ण ॥
॥ढाळ सातमी॥ ॥ देशी चंद्रावळानी ॥ पुद्गल द्रव्यने वर्णवूरे ॥ जेह रूपी कहेवाय ॥ नेद घणा तस दाखीयारे ॥ ए उपयोगे ग्रहाय ॥त्रुटक ॥ उपयोगे ग्रहायसे दाखं॥ परमाणु
बीजो खंध ते नाखुं ॥ खंध दोय नेद ते कहीये ॥ जीव
सहित रहित जिव लहीये ॥ सुणो नवी जन एह ॥ ए १ आंकणी ॥१॥ जिव रहित जे खंधर ॥ तेहना नेद अनेक ॥ @ द्विप्रदेशीथी मामीनेरे ॥ अनंत प्रदेशी ब्रेक ॥ त्रुटक ॥अ. ७ नंत प्रदेशी बेक अनंता ॥ मीले वीखरे नंग सादी संता
विन्नाव पर्याय ते कहीए ॥ परमाणु स्वन्नावे लहीए ॥ & सुणो० ॥२॥ जीव सहित जे खंधबेरे ॥ तेहना कह्या है नेद दोय ॥ सुक्ष्म बादर जाणीएरे ॥ वर्गणा चौ चौ सोय .
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