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________________ GOODHDBGRA श्री धर्म प्रवर्तन सार, उत्सर्ग कायानो करे, त्याग ए ज्ञान संयोग ॥ १) बाधित नाव सवेटळे. लहे अव्याबाध लोग ॥३॥ ॥ ढाळ ९ मी॥ ॥ वगमानो वासीरे मोर शीद मारीयो ॥ ए देशी ॥ तप पद पूजीने निरजरा करीयेर, बंधने विदारीरे कर्मथी बुटीये ॥ ध्यान तपे धर्मध्याने आज्ञा विचारी रे, मिथ्यात्वने मारी रे समकित खिजीये ॥ अज्ञानने निवारी रे है ज्ञान रस पिजीये, अवतने गाळी रे विरति रसे नीजीये; प्रमादने टाळी रे अप्रमत्ते रीजीये, मोहने विदारी रे, यथाख्याते सिमीये ॥ ए आंकणी ॥१॥ अप्पाय विचय बीजे. पाये विचारी रे, आतमरामरे अनंत गुणीने किजीए ॥ विपाक विचय त्रीजे पाये गुणवंतरे ॥ परसंगे फळरे विपाक अशाता लिजीये ॥ अज्ञानने ॥ अवतः ॥ प्रमाद ॥ मोह० ॥॥ संस्थान विचार ते असंख्याता लोकमांही रे ॥ कर्म पर्यायेंरे जन्म मरणे फरसीये ॥ एम चउन्नेदे धर्मध्यान तप ध्यायारे ॥ शुक्ल ध्यानरे परसंग त्यागी किजीये ॥ अज्ञान० ॥ अवतम् ॥ प्रमाद० ॥ मोह० ॥ ३ ॥ पेहेले पाये स्वपर विचार निन्न निन्नरे ॥ वहेंची जूदा जूदारे जीव पुद्गल दोय कीजीये ॥ मोहमद शहां आत्म प्रदेशथी टाळीरे ॥ ध्यान अग्नियें लगामीरे यथाख्यात ली. जीये ॥ अज्ञान० ॥ अवतः ॥ प्रमाद ॥ मोह ॥४॥ बीजे पाये अनेद ज्ञान एकत्वरे ॥ परअनुन्नवरे गण बार-ह मेथी टाळीए ॥ ज्ञानावरणी दर्शनावर्णी अंतरायरे ॥ तेने RAKSardaar Base BREA BeDEONODEMONEYPRODE Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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