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________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. जन्म मरण करवानुं बीज बळ्युं, तद्नवे मुक्ति पामवी ६ एम निर्नय थयु. निरालंब कहेतां हां श्रेणि गते मन वचन अने काया आदे कोश् अचेतन पक्षनुं अवलंबन आठमा गुण गणाथी नथी. साम नांदी कहेतां श्रेणि गते कदाच मरणांत उपसर्ग उदयिकता योगे श्रावे तोपण श्रव्यापकपणे दुःख विपाक नही वेदतां कायायोगे सहन करवा सामर्थ्य . वली कायाना पुःख सुखनो विनागी श्रेणि गते चेतन नथी. मरणादि नय नांही कहेतां मरण श्रादे संसारमा नव जमतां सदा सर्वदा अनेक नयनी। र जीवने निती एटले बीकडे ते कायामां चेतना इंघिय द्वारे परिणाम पामी . तीहां सुधी जाणवी परंतु श्रेणि गते चेतन अनंत वीर्यनो धणी . ते वीर्यनी स्फूरणायोगे पोतीकी चेतनाने कायाथी पलटावी पोतीका स्वरूपे अंतःकरणे अनुन्नव नूवने परिणमावी . तीहां नयनो असंनव जाणवो. देहातित रूपातित कहेतां देह एटले काया अने रूप एटले वर्ण अथवा मूर्तिपणुं इत्यादि जम जाति तेने अचेतन कहीए. तेथी अतित एटले रहित एवं यात्म जनित यथाख्यात कहेतां क्षायक नावनुं पांचमुंह चारित्र अरूपी,अमूर्ति,अचळ, अविनाशी एवं सादि,अनंत नांगो लागे जेने ते, चारित्र वली बीजुं नाम वीतराग | संयम डे जेनुं, ते ग्रह्यो है कहेतां दशमा गुणगणाना अंते एटले बारमे गुणगणे ग्रयु ने जेणे, सोही कहेतां तेही / पुरुष शुद्ध कहेतां शुद्ध परिणतिए एटले वीतराग परिणMoscowrooriterDrone HTRAaramaroordareer GrorenownerBAGES Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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