SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RAGAR GARGrdGARomance REG MIRRORomar श्री धर्म प्रवर्तन सार. इत्यादि बहु देशना, नवि जीवने आपे ॥ जीव पुद्गल जूदाजूदा, श्म बीहु पद थापे ॥ हां० श्म बीहु पक्ष थापे, हां० संग्रह नयनीए डापे ॥ हां० परपणे नहीं व्यापे, हां० गुणपरने ए नापे । हां जीव निज पर मापे, हां बुटे अन्यथी आपे॥॥॥ है इत्यादि देशना देश, अरिहंतजी तारे ॥ झान शीतल श्रद्धा करी, केश धर्म काज सारे । हां के धर्म काज सारे, हां प्रजुनो उपगारे ॥ हां नवी पूजो निरधारे, हां० धन खरचो अपारे । हां० योगत्रण समारे, हां नहींतो नवहां रे॥०॥५॥ इति प्रथम पदपूजा. ॥ १ ॥ श्लोकः-उह श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्यु निवारयाण, अज्ञानोच्छेदकाय श्रीमतेवीरजीनेडाय जलंचंदनं, पुष्प, धूपं, दिपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं च यजामहे स्वाहा ( या काव्य दरेक पूजा दीप कहेवू) पूजा ॥२॥जी॥ दुहा ॥ सिद्ध निरंजन गति नमुं, अलख अगोचर रूप ॥ १ आदि अंत नहीं एहने, परमानंद स्वरूप ॥१॥ " ॥ ढाळ २ जी. ॥ ॥ देखो गति देवनारे ॥ ए देशी. श्री सिद्ध पद आराधीयेरे, जे निज संपत्तिवंत ज्ञान अनंतु दर्शनेरे, चरण वीर्य अनंत नमो सिद्धरायने रे. है ॥ए आंकणी കാരം രാഷ RIGroorkGRAGeranGG.GOOG www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy