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________________ PREGAONGGARRIAGr amereBRARE GEET શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર. श्रव्याबाध सुख शाश्वतुं रे, परमानंद स्वरूप अटळ अवगाह अगुरु लघुरे, अमूर्ति अनूप ॥ नमो० ॥२॥ दायक समकितवंतगोरे, चिन्ह मूर्ति परिब्रह्म. परमज्योति व्यक्ति हुरे, टळीयां आवे कर्म ॥ नमो० ॥३॥ अज अवीनाशी निरंजनो रे, लोक शिखर करे वास ॥ त्रणे काळनी वर्तनारे, एक समय प्रतिलाष्य ॥ नमो० ॥४॥ में एक सिद्ध तीहां अनंत ने रे, निज निज रूपेरे निन्न ॥ है & नहीं बांधा सिद्ध जीवनेरे, गुणपर्यायमा लीन्न ॥ नमो०॥५॥ G गुणपर्याय अनंतनी रे, व्यक्ति अनंती रे थाय ॥ को कोश्मा पेसे नहीं रे, सौ नीज धर्मे समाय ॥नमो॥६॥6 व्यक्ति व्यक्तियें जिन्नतारे, आनंद केरी रे थाय ॥ एम आनंद अनंतो हुवे रे, तेनानोगी सिद्धासदाय॥नमो०७ एक अनेक आदि अनादिरे, गुरु, लघुने मध्यस्थ॥ इत्यादिक नेद सिद्धनारे, जाणो बेशी संयमरथ॥नमो॥ तेथी सिद्ध पद पामीयेरे, नविजन करजो विचार ॥ ज्ञान शीतळ कहे आपजोरे, सिद्धराय सिद्धपद सार॥नए॥ इति सिद्ध पद पूजा ॥२॥ पूजा ॥ ३ ॥ जी ॥ दुहा ॥ बत्रीस गुण विराजता, पाळे पंचाचार ॥ षट् दर्शनने जाणता, स्याहादी सिरदार ॥१॥ है ॥ ढाळ ॥ ३ ॥जी॥ ॥ महावीर प्रजु घेर थावे ॥ ए देशी ॥ ६ श्राचारज पदने पूजी जे, गुणरागे वंदन कीजे ॥ 6866 xosses PROGRAGAR GARIBARAGAOGore Gore Sross Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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