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________________ ધર્મ પ્રવર્તન સાર. HALEvereos BreareBOMBrerana BaramaraGGDar PSGMAGARIGORAGARIGORAGAR १ नेद ज्ञान घटमां वसे, तो श्रद्धा स्थिर याय ॥ स्वपर विनाग करे तिहां अनुनव घट प्रगटाय ॥ ६॥ १ . समन्नाव वृत्ति एह बे, नाव पूजा पण तेह ॥ अनंतकारण सिद्धनुं, तेमां नहीं संदेह ॥७॥ ॥ढाळ ॥१॥ ॥राग बिलावर ॥ 8 जगत् प्रजु श्रागळ नवी वर अक्षत धरीए ॥ ए देशी ॥ अरिहंत पद गण तेरमे, घाति कर्महणीने ॥ अनंत चतुष्टयी पामीया, परियाय उणीने ॥ हांहारे पर्याय बणीने, हांदारे उपयोगी थश्ने ॥ हांहारे ज्ञान रमण लहीने, हांहां रे संन्नीरुढ ग्रहीने ॥ हांहारे मूळ रूपे रहीने, हांहां रे वीतराग बनोने ॥ अरिहंत पद गण तेरमे, घाति कर्म हणीने ॥आंकण ॥१॥ चार निकायना देवता, असंख्य तीहां आवे ॥ चोसठ इंद्र देवांगना, मळी मंगळिक गावे ॥ हांहां रे मळी मंगळिक गावे, हां तीहां त्रिगहुँ बनावे ॥ हां के जळ वरसावे, हां० केश् कसुम बीलावे ॥ हां बीच कल्पवृक्ष गवे, हां पर्षदा बार आवे॥॥॥ तीर्थपति अरीहंतजी, सिंहासन सोहावे ॥ चजदीशि चउमुख देशना, देश सउने सुणावे ॥ हां० देश सउने सुणावे, हांग ज्ञान जीव जाणे आवे ॥ हां तीहां मिथ्यात्व जावे, हां समकित शुद्ध पावे ॥ ६ हां० लहे वीरति नावे हां सिद्ध अनुक्रमे थावे अ०॥३॥ PRAGDIErrorangIES marrGreams Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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