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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. लहे अरिहंत पदमां, आयु बेमे थाय योग रोध ए, श्रघाति ( चौधेत अयोगी अंते, एम स्थिति पाके लहे नवि सिद्धए ॥ ॥ ए सिद्ध हेतु तत्वगुण गाया, अंतरयात्म स्थिर-3 जाव ए, निजपर हित अर्थे रचना कीधी, ते शुद्ध करो ज्ञानी गुणवंत ए, ॥ ३० ॥ उंगणीस बासठ विजापुरमां श्रावण, शुक्ल बीज सोमवार ए, श्रद्धा प्रकरण ग्रंथ पुरण, करतां प्रमोद अपार ए ॥ ३१॥ आ ग्रंथ नविजन रुचीये नणशे, सूणशे निश्चल चित्तए, ज्ञान शितळ तद्गत रटण करतां, पामे समकित रत्न विनित ए ॥ ३२ ॥ सर्व गाथा २०० ॥ श्लोक संख्या सवात्रणसो (३२५)॥ समपूर्ण. ॥
॥श्री गुरुन्योनमः ॥ अथ श्री नवपदजीनी पूजा लिख्यते
॥ दुहा. ॥ चउवीशे जीनपति नमुं, नमु अप्रमत्त निग्रंथ ॥ धर्म तेनुं नाख्युं सही, सो समकित शीवपंथ ॥१॥ ते साधे सिद्ध चक्रने, पूजे नित्य द्रव्यनाव ॥ ते नव नेदे वर्णवं, अनुक्रमे निज सदनाव ॥॥ अरिहंत सिद्ध त्रीजे सूरि, पाठक मुनि गुण धाम ॥ दरशन नाण चरण वळी, तप छादशविध नाम ॥३॥ ए नवपद नक्ति करी, पूजा रचुं मनोहार ॥ नव पद गुण गण गावतां, त्रुटे कर्म प्रचार ॥४॥ नवपद सोहि आतमा, योग इंजिथी निन्न । । पुद्गलमा लाधे नहीं, नवपद गुण- चिहन ॥५॥
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