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________________ reBOMBRata Dire RAGARGra Giri श्री धर्म प्रवर्तन सार, कारण मी घटंतर ग्रहीये, शुद्धात्म अनूनव शिव तहीं ॥ १७ ॥ एहि देव परमात्म पोते, एहि गूरु शुद्ध उपयोग 5 ए, एहि स्याहादधर्मे परिणमतां, परमानंद स्थानपद सि द्धए, ॥ १५ ॥ एम देवगूरु धर्मतत्व अनुन्नव, शुद्धनय ७ स्थापी कीजीये, आळपंपाळने पूर टाळी, सेहेजे शिवसूख ( लीजीये, ॥ २० ॥ एम साध्य साधो सत्ता आराधो, आ. रोपित धर्म परिहरो, शक्ति प्रगटे व्यक्तिनावे, अजरामर सुखने वरो ॥१॥ ए सूख अनादि आत्मसत्ताए, गूण- ६ गुणता तिरोनावे रद्यु, आविर्ताव तेनो प्रगटतां, लाधे है क्षायकन्नाव एम सद्दडं ॥॥क्षायकन्नावे अनंतगूण वृत्ति, गुणगूण स्वनावे जिन्नता, उत्पाद व्यय गुणगत होवे, अव्ये कहीये ध्रुवता ॥२३॥ पूर्व पर्याय व्यय गुण वृत्तिए,अनिनव पर्याय उत्पादए, एम समे संमे हाणी वृद्धि वृत्तिये, तिहां प्रगटे परमानंद ए ॥ २४ ॥ परमानंद गुणगुणनो जुदो, अनंतगुण आनंदोपेतए, तेनो लोग गुण निष्पन्नसमे कहीये, वाकी उपनोग चिरकाळ गतए ॥ २५ ॥ एम पू. कानंद जोगी सिद्धात्मा, तेमां अपूर्णता होवे नहि, एक ? समय मात्र विरहकाळ नावे, उख अशाता विघ्न कदी नहीं तहीं ॥ २६ ॥ ए सूख साधन घटतरमां, गुण श्रेणीये नेदानेदता, नेद बेद करी अन्नेद लहतां, पामे यथाख्यात, वितरागता ॥ २७ ॥ इहां संसार मूळ बीज विनाश होवे, ६) खूटे रागद्वेषने मोह ए, त्रण कर्म वितरागन्नावे हणलां, चउघातीनो थाय उच्छेदए, ॥ २७॥ तिहां अनंत चतुष्टय . andressiste ODGE BreeMBroreMBEMBroBe Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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