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________________ GOOGrogram RAGRABPORNERGRIGre, १ तप जप क्रिया करणी, निष्फळ वृथा जे आचरो ॥७॥ समकित विण अशुन्न करणी, आत्महेतू नवि कही, संसार १ ६) वृद्धि हेतू नाषी, गमगम देखो सही, ॥ ७॥ सर्व धर्मर्नु है मूळ समकित, सत्तार्थनय ग्रहणवखाणीये, अव्यगण पर्याय 5 जाणी, जीव पुद्गल पीडाणीये ॥ ए ॥ अव्य अखंग त्री काळवृत्ति, गूण पर्याय आधारए, जीवगुण संवर निर्जराने मोद, ज्ञान दर्शनादि अनंतपर्यायए, ॥ १० ॥ पुद्गलरूपी निर्जीव गूण दाखं, पन्ध पाप आश्रवने वंधए, शब्दरूप रस गंध ने स्पर्स, संस्थानादि अनेक पर्याय ए ॥११॥ एम निन्न जिन्न गूणपर्याय दाख्या, जीवने पुद्गल बेहु द्रव्यमां, पुद्गल गृणनी नास्ति जीवमां, अस्तिजीव गूणनी जीवमां ॥१२॥ एम जगतमांहि तत्व बेडे, जीवने अजीव एम जाणीये, अजीवना पांच नेद नाण्या,अरूपी रूपी मन आणीये॥१३॥ ६ धर्म अधर्म आकाशकाळ चौ, अरूपीने रूपी पुद्गल ए, एम पांच द्रव्यनो समास अजीवमां जीव पुद्गल वे मिव्यां नवतत्व ए ॥ १४ ॥ जीव पुद्गल संयोगे मिश्र नावे, अनादि चगति संबंधए, हेय उपादेय बुद्धि जोगे, होवे नवनो अंतए ॥ १५ ॥ जाणवा योग्य जीव अजीव जाणी, पून्य पाप आश्रव बंध गेमवा, जीव गुण संवर निर्जराने 9 मोक्ष, उपादेय जाणी ग्रहवा ॥ १६ ॥ हेय उपाधि त्याग | त्रण नेदे, उव्य नावे कर्मने नोकर्म ए, द्रव्यकर्म आठ ज्ञा9 नावर्णादि, नाव कर्म सही रागद्वेष ए ॥ १७ ॥ नोकर्म जोग मन वचन काया, अव्य कर्मबंध नाव हेतू सही, ते 8 vs SAGAR Senior RAS Gorware www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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