________________
RSARAGIRGANGREERamGRames
GORGRAMMAR
, जीवगुण ग्रहण करो, भेदज्ञान घटमांहि ॥ समविभाग त्यां संपजे, समकित @ लहो उछांहि ॥७॥ हवे अवतने वर्णवू, सुणजो भविजन सार ॥ तजतां लाभ होशे घणो, विरतिपणुं निरधार ॥ ८॥
बारमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-~आश्रव हेतु बीजो कह्यो, अत्रत बार ६ भेद नाम ॥ हवे त्रीजो हेतु कहुं, कषाय पंचवीश श्याम ॥१॥ अनंतानादि
चौ चोकडी, ए सोळ भेद कषाय ॥ नो कषाय नव भेद सहु, अनुक्रमे वहर्णव थाय ॥२॥
तेरमा ढाळनी पूर्णताये दुहा-आश्रय हेतु त्रीजो कयो, पंचवीश भेद कषाय ॥ मन तन वचन योगना, भेदनो वर्णव थाय ॥१॥ मन वचन 8 दो चउ चउ, सात भेद कही काय ॥ सर्व मळी पंच दस ए, योगना भेद " सही थाय ॥२॥ ह. चौदमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-आश्रव हेतु चोथो कह्यो, योग भेद
दश पांच ॥ कहा सवे चउ हेतुना, भेद सत्तावन नहीं खांच ॥१॥ ए हेतुये आश्रव खेंचीने, कर्म दळ मेळवे अनंत ॥ आत्म प्रदेश संबंध पणे, कार्मण वर्गणा तंत ॥२॥ कार्मण ते आठ कर्मछे, अवर सात कर्म नांहि ॥ समे समे सात बांधतो, मिथ्यात वसे जीव मांहिं ॥ ३ ॥ आयुष आवता भवनु, बांधे जीव एकवारबंध फहुं चउ भेदथी, आत्म प्रदेशे धार ॥ ४ ॥ ___पंदरमी ढाळनी पूर्णताये दुहा.-बंध कह्यो चउ भेदथी, रसविण नहीं
बंधाय ॥ रागद्वेष परिणतिये, निश्चय कर्म बंध थाय ॥ १॥ राग द्वेष 8 जीहां नहीं, सीहां कर्म बंध न होय ॥ वीतराग भावे अबंध छे, निश्चय
वचन ए सोय ॥ २॥ कर्म शुभाशुभ उदयथी, पुन्यने पाप कहाय ॥
पुन्य बायालिस भेदनो, कहु अधिकार बनाय ॥ ३ ॥ ___सोळमी ढालनी पूर्णताये दुहा.-पुन्य भोग ए दाखीयो, पूरव बंध अनुसार ॥ पुनरपी बांधो नहीं, खेरवी सिद्ध पद धार ॥१॥ निश्चय नयनो पक्षए, उतसर्ग साधन एह ॥ उपयोगे भावक्रिया, ध्याता ध्येय ध्यान तेह ॥२॥ एकता अभेद भावमां, तीहां आत्म अबंध ॥ उदयिकता खुटे तिहां, लहे सिद्ध वधु संबंध ॥ ३॥ ए विण मुक्ति मळे नहीं, समजो
GREGAGRGrikGrahari
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com