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________________ reOreorage or oram More More RAMA BIGGre चतुर सुजाण ॥ स्वभाव विण धर्म छे नहीं, उत्तराध्ययन वखाण ॥ ४ ॥ मुक्ति पंथ ए भाखीयो, भाख्यो निज परहित ॥ पुन्य बंध हेतु हवे, कहीरों उपयोग रीत ॥ ५॥ शुभ व्यवहार नये करी, बांधे प्रकृति शुभ ॥ ओगण चालीश जाणीये, गुरु वचने भली बुध ॥ ६ ॥ निश्चय नयनी दृष्टिये, सरागता परिणाम जाय ॥ तेह अणारोप शुभ छे. तिहां प्रणनो O बंध थाय ॥ ७॥ चोथाथी सातमा लगे, जीन नाम कर्म बंधाय ॥ आ- 3 ठमे बंध विच्छेदता, कर्मग्रंथ बीजे कहाय ॥८॥ अप्रमत्त ठाण सातमुं, तीहां आहारक शरीर आहारक अंगोपांग दोय, बांधे शुद्ध संयमीवीर ॥ १॥९॥ ए पुन्य बंध हेतु कहा, कहुं हवे पाप दुख ॥ धाति अघाती वर्ण, ते छुटे लहे जीव सुख ॥ १० ॥ सत्तरमी ढाळनी पुर्णताये दुहा.-गुण घाती पाप वर्णव्यु, पूरव बंध संबंध ॥ अघाती हवे सांभळो, दार्खा ए पाप प्रबंध ॥१॥ अढारमी ढाळनी पूर्णताये दुहा-पाप दुख भोग दाखीयो, घाती अघाती विचार ॥ पूर्व बंध अनुसार ए, सहीये समताये सार ॥१॥ समताविण सेहेतां थकां, होवे न दुखनो अंत ॥ पुनरपि बांधे तिहां, इम भाषे सवि संत ॥२॥ अघाती पाप एम टळे, हवे घातीनो & विचार ॥ ज्ञान विना छुटे नहीं, ज्ञान छे सर्वमां सार ॥३॥6 8 ते कारण भणो ज्ञानने, सेवो ज्ञानी गुरुनेह ॥ विनय करो प्रमोद , लहशो 3 ज्ञानगुण गेह ॥ ४ ॥ ज्ञान धर घटतरे, अनुभव भुवनमाहि ॥ ज्ञान भानु उदय हुवे, घाति पाप भागे त्यांहि ॥ ५॥ ए विग घाती टळे नहीं, स. १ मजो भविजन सार ॥ पापस्थान सेवो नहीं, पापए दुःखदातार ॥ ६॥ । पाप बंध हेतु एह छे, अष्टादश भेद नाम ॥ पंच अव्रत कषाय चौ, रागद्वेष , परिणति श्याम ॥ ७ ॥ कलह कलंकने चाढीयो, रति अरति परनिंदा ॥ १ कपट फंद वचनए, मिथ्यात भारे मोटा जंदा ॥८॥ए हेतु पाप बंधना, एही पापतत्व जाण ॥ पूरण पंच अजीवना, कर्या करुं जीव वखाण ॥९॥ SoSORSorresords PRASAINTINENEWS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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