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________________ r enorrore PRORAGRA GRAHATERMSAMRAGresires १ मंदिर मांही ॥ पूज्य पणुं तीहां पामीआजी, उपयोग प्रग टयो ज्यांही ॥ रंगीला० ॥३॥ अप्रमत्त पगथाळीएजी, एम गुण चेतन पामे ॥ त्यांथी चढवु श्रेणीएजी, वीतराग नावना सामे ॥ रंगीला० ॥४॥ अरिहंत पदगण तेरमेजी, केवळज्ञानमां वास ॥ पूज्य पणुं अति वीस्तयुजी, मुक्तिपुरी त्यांथी पास ॥रंगीला० ॥ ५ ॥ योग रोध करी सिद्धमांजी & वास को तुमे पूज्य ॥ ज्ञान शीतळ जावं तीहांजी, नीज के है आत्माने कहे बुझय ॥ रंगीला ॥ ६ ॥ संपूर्ण ॥ ॥ स्तवन ॥ १३ मुं॥ लाबलदे मात मदहार ॥ ए देशी॥ विमळनाथ जीनराय, कंचन वरणी काय ॥ आजहो 3 उंची साठ धनुष्यनीजी ॥१॥ विमळ श्री सो ज्ञान, बीजें सर्व अज्ञान ॥ आज हो पुद्गलने जीव जे कहे जी ॥२॥ र ते जीव मोही मलीन, तप जप करे थ लीन ॥ श्राजहो आशा बांधे आवता काळनीजी ॥३॥ तीहां संसार स्थिर, १ चेतन सदाय अस्थिर ॥ आजहो बळीओ ते गळीओ थर पम्यो जी॥ ४ ॥ बांधे कर्म अनंत, ए दुर्बुद्धिनो कंत ॥ १ आजहो ए कहे हुं संयमीजी ॥५॥ एम दीसे आज, सुणजो विमळ महाराज ॥ आज हो मारे तो गुरू तुंज डे E जी॥ ६॥ तुमे परण्या स्वरूप ज्ञान, कीg दुर्मतिर्नु स्नान है ६ आज हो दुखदीन नाग ताहरेजी ॥७॥ तीहां थया वि- १ , मळनाथ, कालो हमारो हाथ ॥ आजहो ज्ञान शीतळनी , मानो विनती जी ॥ ॥ संपूर्ण. ॥ ___ (२१५) GORAGARGrorror@GMAGE reORIGrenor Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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