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________________ www. YRaceroors BIGGARAGRGramroGare श्री धर्भ प्रपतन सा२. ॥ स्तवन ॥ १४ मुं॥ । ॥ देशी ॥ चंडावळानी ॥ अनंत जिनपति चौदमा रे, आतमज्ञानी ध्यानी॥ है तुरंग गति रंग ध्यानमा रे, गर्जीत पुष्ट गज ज्ञानी॥त्रुटक॥ गर्जीत पुष्ट गजज्ञानी नसामे ॥ उपाधि सघळी स्वरूपथी काढे ॥ तीहां शीवरूप संन्नाव समाधि, पर अनुन्नव बेदी 6 नाव व्याधि ॥ सेवो अनंत जिन एह ॥ ए आंकणी ॥१॥ अनंत जिनपति ते थया रे, नहीं कोई परना संगी॥ निज अव्यनी वृत्तिए रे, एकत्व रंगी अनंगी ॥ त्रुटक ॥ एकत्व रंगी अन्नंगी सन्नोगी, अमधी क्षण तुं रहे न अन्नोगी, राग रंग तज्यो तुही स्वामी ॥ वीतराग यश् सहेज नाव आरामी ॥ सेवो० ॥२॥ अनंत चतुष्टयादि गुण वर्या रे, गुण घाति करी चळ नाश ॥ अव्यावाधादि वर्या पजवा रे, अघाति कर्म त्यां विनाश ॥ त्रुटक ॥ अघाति कर्म त्यां विनाश अनंतां समश्रेणी सिद्ध वधु वरंता, कार्य पूरण की, स्वामी ॥ सादि अनंत स्थीति तीहां पामी ॥ सेवो ॥३॥ परमानंद पद शाश्वतोरे, मूळ रूपमांही देखाय ॥ आधि व्याधि जिहां नहीं रे, तीहां निरंजनराय ॥त्रुटक॥ तीहां । डे निरंजनराय मुज प्यारो ॥ ए वीण सर्वे लागे खारो, ते ? कारण अंतरमां वशीये ॥ स्थिर थर त्यांथी नवि खसीये है ६ ॥ सेवो ॥ ४ ॥ एहीज कारण सिद्धनुरे, ए वीण अवर १ न पुजो ॥ ज्ञान शीतळ करी त्यां जरे, अलख अचळ , 5 पद पूजो ॥ त्रुटक ॥ अलख अचळ पद पूजो स्वामी ॥ HeasEssion GongresGore GreGrenorrorangeBooo Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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