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________________ Gre Gre PRASAGAR GARMERASABASSAGES 9 देवाधि देव ए ने शीवगामी, सर्व शिद्धांत तणो ए सार ॥ ६ श्रद्धा करीने लहो नवपार ॥ सेवो० ॥ ५ ॥ संपूर्ण ॥ १ ॥ स्तवन ॥ १५ मुं. ॥ ॥ देशी एकवीसानी॥ धर्मनाथजी रे देव पनरमा सुखकरु ॥ दीये देशनारे , नय गरनीत ए जीनवरु ॥ एक ज्ञानमां रे नय साते तुमे & नाषिया, अज्ञानमां रे चोथी नय सुधी राखीया ॥त्रुटक॥ शब्दनय समकित पामे, मिथ्यात्व धर्मने परह रे ॥ वस्तु , स्वनाने धर्म सदहे, अंश अंश परगट करे ॥ वस्तु स्व नाव ते शब्द नय , तेमां अंश नैगम नळे ॥ जीवसत्ता शुद्ध ग्राहक, ए संग्रहनय त्यां मळे ॥ १॥ जीव स्वन्नावे रे, ज्ञान उदय प्रकाशीयो, तीहां पुद्गल रे उपाधिपुर ना. शीयो ॥ तेथी चेतन रे, शुद्ध थयो समाधिमयी, ए व्यवहार नय रे, मिल्यो शब्द नयने जश् ॥ त्रुटक ॥ ज्ञानध्यान उपयोगे आवे तीहां मन हाले नहीं ॥ ए पद ऋजु सूत्र नयनो, मल्यो शब्द नयने तहीं ॥ शब्दनय आरुढ वृद्धि, वस्तु धर्म प्रगट पणे ॥ ध्याता ध्येय ध्यान एक तीहां, सम नावे केवळ जणे ॥ २॥ ए अरिहंत रे समनिरूढ नये आविया, उपर दाख्या रे, पांच नय ते साथे लाविया ॥ हवे इहांथी रे योग रुंधीने सिद्धिवरे, लोकंतेरे सिद्ध शिस्खा उपर ठरे ॥ वटक ॥ तीहां एवं नृत नय थावे, एम करीए सप्त नय साधना ॥ शक्ति व्यक्ति मांही नळे त्यां £ कहीए आराधना ॥ सिद्ध साधन शब्द नयमां, ज्ञानयोगे 9 Heasesgsaxesari STATEGGGnGamaraGGDoGG GRAGRAara १. २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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