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________________ GreGrammar REPRAGATGARAKHARASARAGRARg १ जाणीए ॥ बीजी नयोगनित श्रावे, तेमां हम नवी ताणी- 8 ए ॥३॥ एम सप्तनये रे वस्तु धर्म तुमे वर्या, तेथी धर्मनाथरे ३ अमे तमने कहीए खरा ॥ तुमे अहनीश रे मुज घट अंतर है श्रावजो, मुज चेतना रे तुम संगे जगावो ॥ त्रुटक ॥ ६ एम कीधुं धर्मनाथे, श्राव्या अनुलव मंदिरे ॥ पण मुजने के मलीन देखी, बेग नहीं कंश् चित्त थिरे ॥ तीहां मुजने 6 प्रमोद जामो, आणंद हरख वधामणां ॥ ज्ञान शीतळ करे । विनति, वळी दर्शन देजो तुम तणां ॥ ४॥ संपूर्ण ॥ स्तवन ॥ १६ मुं॥ शांति जिणेसर केशर अर्चित जगधणी रे ॥ के अर्चित जगधणी रे ॥ ए देशी ॥ शांति जिणेसर साहेब मुज मनमां वस्योरे॥ के मुज है मनमां वश्योर॥नाव रोगनो टालण अवरन तुज जिश्योरे . ॥के अवर०॥ रोग सोग संताप क्लेश निवारीयोरे॥क्लेश थइ शांतिः टल्यो रोग निरोगी तुं नाळी रे ॥6 निरोगी तुं० ॥१॥ रूप अनंतु साहिब दीसे ताहरूं रे ॥ के दीसे ताहरु रे ॥ तुज मुख पुनमचंद हृदय हीसे माहरु रे ॥ हृदय० ॥ कंचन वरणी काया कंचन सम दीपती रे ) ॥ कंचन ॥ सेवा करतां लान्न घणो मुज आपती रे ॥ घ.. णो ॥२॥ जळचंदन वरधूप दीपशुं पूजीएरे ॥ दीपशुं पूजीएरे ॥ कुसुम अक्षत नैवेद्यने फळ धरी बुझीयेरे ॥ फळ ॥ इत्यादिक शुद्ध द्रव्य शुं पूजो नवि जनोरे ॥ के ! पूजो० ॥ निमित उपादान समज्यां कार्य करे सवि जनोरे । ॥ कार्य करे० ॥ ३॥ तुज गुण गातां अंतर रंग वधे मुनेरे ६ 5856xamGroris PROGRAGRAGRAGrd GRAGrenoNGAGGC RamroGGERAGNI Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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