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________________ FROMRAGreAGARLSEARRAIMRAPASAB अनुनव ज्योति अनंगरे, परमानंद लोग रंगरे, शिवपद । लहीये एकंगरे, सादि अनंत लागे नंगरे ॥ संजमि० ॥ सातमो सत्य धर्म मुनितणो, सत्य जब सत्ता प्रगटायरे, संग्रहनयथी शिवरूप बे, तेनो एवंजूत थायरे, ते सत्य धर्म ६ कहायरे, असत्य उपाधि हणायरे, निरुपाधि शिवपद पायरे, लोकंते सिद्ध स्थिर गय रे, निराकार निरंजन राय रे, अव्यावाध सूख सदायरे ॥ संजमि० ७ ॥ नावथी सोच धर्मे मुनि रमे, न गमे शुन्नाशुन्न ज्यां हिरे, शुन्नाशुन्न तेह एंडे, अनंतजीवे वमि जगमांहिरे, ग्रही आश्रव बांधे मुनिनांहिरे, निर्जरे मुनि उपयोग ताहिरे, योग्य जीवतारे ग्रही बांहिरे, व्रतना उदासि नाव आहिरे, रहे नेळा नळे १ नहि क्याहिरे, नळे मूळरूपे सिद्ध शांहिरे ॥संजमि० ए॥ नवमो अकिंचन धर्म ए, मुनिमारग शिवपंथरे, कंचन दो & नेदे नाखीयुं, अव्यन्नाव देखो ग्रंथरे, तज्यां व्यथी अव्य है है निग्रंथरे, मूळ न वळयुं त्यां रह्यो अनर्थरे, अव्य त्यागथी ७ सरे नही अर्थ रे, नावग्रंथी तज्यां शिववधू कंथरे, शहां कार्य थाय यथा तथ्यरे, मिले यथाख्यात संयम रथरे । ॥ संजमि० १० ॥ दशमो ब्रह्मबत पालता, शिलंगरथे बेग मुनिजायरे, संयम श्रेणीमा एकला, उपयोग स्थिर सहायरे आतम अनुलव पायरे. प्रत्यक्ष्य प्रमाण कहायरे, ध्यान तुरंग नचायरे, झान गजगारव थायरे, उपाधि अनंति हणायरे, रिद्धि लै मुनि सिद्ध सधायरे ॥ संजमि० ११ ॥ एम दशन्नेदे मुनि धर्मने, आराधे जे अढीछिपरे, ते सर्वने करुं विधिवंदना ए मिले उदे थाय पून्य पीपरे, तिहां ल (१८०) SGARGGoraharaswarasRenore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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