SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री धर्म प्रवर्तन सा२. s n Gore GARGroranoranora PROGRAPHRASARAPRILSEXGore Greg १ हीये ज्ञान जेसो दीपरे, वारंवार आपे बोध नरी बीपरे, ६ पीतां पीतां नागे मोह टळे टीपरे, अनुक्रमे लहे अन्नेद स्वरूपरे, मोह न घटे त्यां नगरपर लीपरे, ज्ञान शितळनी गुण समीपरे ॥ संजमि० ॥ १५ ॥ समाप्त. ॥ दुहा. है संयति धर्म ए वर्णव्यो, दश नेदे गुणखाण. १ तेने अंगे आणतां, लदिये पद निर्वाण विण आत्म जे जे कथा, तेद न धर्म कहाय, नव जमण एदथी वधे, समजो नवि चित लाय ॥२॥ आत्म अनात्म निन्नता, तेहिज कहिये ज्ञान. स्थिर श्रधा पलटे नहि, ए समकित अनुमान ॥३॥ उपाधि देशथी टाळतां, लहे पंचम गुणगण. एकादश प्रकृत्तिनो, दय उपशम त्यां जाण ॥४॥ उपाधी टाळे सर्वयी, तेहिज संयति धर्म. 3 अप्रमतादि नावे लदे, दपक श्रेणी शिवशर्म ॥५॥6 ॥ ढाल छठी ॥ ॥ गायो गायोरे मेंतो देव गुरु धर्मने गायो॥ देव अरिहंतने सिद्ध निरंजन, दायक लब्धि अनंतस जोगी, समय समय लोग उपनोग करता, एक समय न १ , कदिय अन्नोगी रे ॥ मेंतो देव० ॥१॥ गायो गायो रे है ई ध्यान ध्यायो रे, जीन आझाये धर्मने पायो, ॥ ए आंकण॥ 6 ___( १८१ ) GORAGAR GARAGRAGRAGrRAGAR GARL Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy