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________________ MargareroornaraGGGAR PERMSABSASRAREER SAMRAGHAT श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ परमानंद अनंतो प्रगटयो, रमण गुणगत निन्न स्वन्नाव, ६ क्षिण मोह अंते घाति कर्म सत्ता बेदी, कायक लब्धि था-१ ७ स्वादि अरिहंत रावरे ॥ मेंतो० ॥२॥ त्यांथी तुमे देव , ६ सेवक हुँ तमारो, जाणी पोतानो बांहि ग्रही तारो, तार & कबिरुद निमित्त हेतु मिलीयो, तेथी जलदी लहीए नवो दधि आरोरे ॥ मेंतो० ॥ ३ ॥ गुरु गितारथ आतमझानी, 5 सदा निस्पृह नावे वर्ते, स्याहादादि वळी करुणा सागर; । 2 करे उपगार अनंतो नाषा खरतेरे ॥ मेंतो० ॥ ४॥ सद्-6 है गुरु नाषा अमृत पीपासा, रुची करी उपयोग सूणशे, ते । तत्त्वा तत्त्व विचारी शंका बेदी, बोधि बीज लही विरती गण ग्रहशेरे ॥ मेंतो० ॥ ५ ॥ देव गुरु दोय निमित्त पृष्ट । 3 कहीये, तेथी उपादान धर्मवृत्ति लहीये, हेय उपादेय बुद्धि पामीने, हेय बंमी उपादेय तिहां ग्रहीये रे ॥ मेंतो० ॥६॥ उपादेय धर्म रत्नत्रयि तेहि, उपयोग नावे लहीये, शिवहेतु संवरनिर्जरा करतां, उपाधि हणी उपरनुं गण ग्रहीयेरे ॥ मेंतो ॥ ७॥ एम शुद्ध व्यवहारे साधन करतां, 8 अनुक्रमे केवळ नाण लहीये, अघाति चौहणी अयोगी | अंते, सिद्धि वरीये अदय सूख तहीयेरे ॥ मेंतो० ॥ ७ ॥ एम धर्म तत्त्व आराधो नविजन, शिव पंथनो ए सीधो 9 रस्तो, आ काळे पामवो अति पुर्खन्न, मिळे तो श्रेष्ट काळे स्थिती पाके ग्रहतो रे ॥ तो० ॥ ए ॥ सिधो रस्तो नेद ज्ञाने लहीये, नेदज्ञान ग्रंथी नेदी तिहां कहीये, जम है चेतन दोय निन्न परिणमावी, अनुन्नव करतां विषय अण- ६ RALENDEVDrirror Dr PresearBAGBarsanaraGenerangama Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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