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________________ PreeMAGreer ॥ ए क्रीया ॥५॥ रस ते राग द्वेष अशुद्ध रस ॥ अज्ञान ६ रस अशुद्ध ॥ जेटलो पोतामां होय ते रसथी ॥बांधे आत्म प्रदेश अबुद्धरे ॥नवीका॥ एक्रीया० ॥६॥ प्रदेश कर्मदळ ६ मोह प्रकृति ॥ रस अज्ञान राग द्वेष ॥ निजातम असंख्य # प्रदेशे ॥ बांधे एकत्व परिणमन बेसरे॥ नवीका॥ ए क्रीया है ॥ ७॥ ए कर्मबंध जीहां तक रेहेवे ॥ आत्म प्रदेशथी न & विखरे ॥ तेना काळy मान ते स्थिती ॥ उत्कृष्टी कहूँ सिखरेरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥॥ ज्ञानावर्णीने दर्शनावर्णी वेदनिकर्म अंतराय ॥ त्रीस कोमाकोमी सागरोपमनी ॥ स्थिती ग्रंथे कहायरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥ए॥ मो हनी कर्मनी स्थिती दूनेदे ॥ मिथ्यात्व बीजो कषाय ॥ 3 सीतेर कोमाकोमी सागरोपमनी ॥ मिथ्यात्व मोहनी कहाहूँ यरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥ १७ ॥ चाळीस कोमाकोमी सागरोपमनी स्थिति कषायनी दाखे ॥ समकीत घातीए मिथ्यात्व कहीए॥ घाती कषाय नाखरे नवीका॥ ए क्रीयाः १॥११॥ नामने गोत्र बे कर्मनी स्थिती ॥ सागरवीस कोमा६ कोमी ॥ तेत्रीस सागर आयुष्य केरी॥ दाखी ग्रंथे उष्टी जो६ मीरे॥नवीका॥ ए क्रीया० ॥ १२ अझान राग द्वेष अशुद्धह रस॥ मतीश्रुत विनंगअज्ञान ॥ राग द्वेष परिणति अशद्ध ॥१ 9 ए कर्मबंध हेतु स्थानरे ॥ नवीका ॥ ए क्रीया० ॥१३॥ सम कित वीण ज्ञानी नही होवे ॥ वितराग विण रागी द्वेषी॥ ६ & समकिती संन्नावे अबंधक ॥ सकाम निर्जरा लेसीरे॥नवीका है है॥ए क्रीया० ॥ १४ ॥ ए विन्नाव क्रीयामां नांगा कहीए ॥ ___(१४८) EPALI Diroregaon Dr D ai Relangaroo poriesord Ganedeore BROGRagni Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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