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पत्र १७ थी नवपदजीनी पूजा शरु थाय ने ते पण वाचकोनेवानंद श्रापशे. पत्र २०४ थी अध्यात्म चोवीशी पाववामां श्रावी ते पण अत्यंत उपयोगी ग्रंथ . पत्र थी चैत्यवंदन अधिकार . पत्र २३६ थी स्तवन अधिकार जे. पत्र २६० थी सज्जाय अधिकार ने पत्र श्ए१ थी गुरुन्नक्तिनो रास शरु थाय .
था प्रमाणे गयमां अने पद्यमां ग्रंथो सिद्धान्तानुं सार बताववामां आव्या तेमां वीतराग आज्ञा विरुद्ध जे कंश लखायु होय तेनो मिच्छामिक्कम द ढुंजे मुनिवरो वा श्रावक विछानो ग्रंथ संबंधे नूलनो सुधारो शास्त्र सादी पूर्वक बतावशे तो तेमनो उपकार मानवामां आवशे. .. अध्यात्म शैली अने अव्यानुयोगनी शैली पूर्वक श्रा ग्रंथ लखायो होवाथी तत्तत् संबंधी शैलीना अन्यासिर्जने था ग्रंथ उपयोगी थर पमशे एवी आशा राखवामां आवे . . ...: या ग्रंथ उपाववा माटे धन व्यय सहायमां तेमज श्रा ग्रंथ तपासवामां जेए मदद करी ने तेमनो उपकार मानुं बु.
जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक सिद्धांत शैलीनी मान्यता (श्रद्धा) था लेखकने ने तेथी प्रसंगे कोई अन्य धर्मना सिद्धांतो उपर आक्षेप थयेलो क्वचित् देखाय तो अन्य धर्मीए न्याय दृष्टिथी सत्य तत्वनो तोल करी सत्यतत्व ग्रहण करईं एज.
लेखक श्रावक-सूरचंदनाइ सरुपचंद. मु. विजापुर (विद्यापुर).
गुजरात....
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