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________________ (४) तेने अमाए कल्पव्यवहार नाम आप्यु ले तेमां अन्य अमारो उद्देश नथी. शास्त्रोमा “जितकल्प-बृहत्कल्प विगेरे नामथी प्रसिद्ध में अने तेमां साधुना आचारनुं विवेचन जे. साधुनो श्राचार पापनो कय करे . श्राश्रवनो नाश करे . संवरनी पुष्टि करे . माटे तेमां अनुत सामर्थ्य रघु जे. तेथी कल्पव्यवहार एवं अमोए “गुणधेय" नाम आप्युं . आ ग्रंथमां झानार्णव--समयसार वगेरे ग्रंथोनी सादी आपवामां आवेली . तेथी एम न समजवु के श्रमों तेना अनुयायी बीए ज्ञानार्णव वगेरेमा श्वेतांवर सिद्धांतोना आधारे जे वाक्यो मळतां आवे ने तेटलांज अमो मानीए बीए. वाकी श्वेतीवर सिद्धांतोथी जे विरुद्ध प्ररुपणाने एवी दिगंबर ग्रंथोनी वासने श्रमो मानता नथी कारण के उत्सूत्र वात मानवी नहीं. आग्रंथमा साधुना ओंचारोनी उत्कृष्टता बतावी ले तेनुं कारण के जे वस्तु बताववी ते उत्कृष्ट बताववी. जो एम न वताक्वामां आवे तो. आचारोनुं ढीलाशपणुं थ जाय. आ आशय विना साधुउनी आचार विगेरेनी टीका करवानो अंश मात्र पण बीजो श्राशय नथी.साधुवर्गने अमो अमारा पुज्य गुरु तरीके जोइए बीए तेमनामां शुद्ध प्रव्य व्यवहारनो विशेषतः प्रकाश थार्ड एटर्बुज इच्छिए बीए था ग्रंथना समाप्ति पत्रमा सिद्धनुं स्वरुप देखाय छे ते वांचवाथी वाचकोने अतिशय लान थशे.... पार पश्चात् पत्र १५६ थी क्षायिकनाव तत्वविलास पद्य ग्रंथ लखवामा श्राव्यो बे. तेमज पत्र १६३ थी श्रद्धाप्रकरणनी ढाळो लखवामां यावी है, ते श्रद्धा प्राप्त थवानो हेतु ...... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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