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________________ प्रस्तावना. ___ सर्व धर्मनो विचार करतां सर्वोत्तम जैन धर्म सत्य ले एम निश्चय थयो ने जैन धर्ममा श्वेतांबर दिगंबर ए बे शाखा असलथी श्वेतांबर थाम्नायनां सूत्रो चाल्यां थावे जे माटे श्वेतांबर शास्त्रोनी प्रामाणिकता सिद्ध . दिगंबरो पण पहेलां सूत्रो मानता हता पाळथी ते मानता नथी एम जणाय जे. श्वेतांबर मार्गमां व्यवहार अने निश्चय ए बे नयो कह्या . दरेक नयनुं स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म जे. माटे शास्त्रकारोनी श्राज्ञाप्रमाणे बे नयने जाणवा खप करवो श्वेतांबर मार्गमा हरिनप्रसूरियशोविजय उपाध्याय विगेरे महान् पुरुषो थर गया . जैन धर्मनी प्रवृत्ति केवी रीते करवी ते संबंधी तेडए पु. स्तकोमा सारं अजवालु कयु . पूर्वाचार्योए धर्मनी प्रवृत्तिनी शुद्धता थवा माटे नयो पूर्वक धर्म तत्वनुं वर्णन कयु . माटे अत्रे पण तेउनी वाणी अनुसार अशुद्ध मार्गने बतावी सुद्ध धर्म बताववा प्रयत्न कयों .प्रथम धर्म प्रवर्तनसार ग्रंथ दाखल कों . तेमां व्यवहार नयना नेद बतावीने धर्मनी वाख्या करी बे. तेमां मोटा नागे श्री देवचंपजी अने श्रीमान् यशोविजय उपाध्यायजीना नाषा ग्रंथोनी साक्षी थापी विवेचन कर्युडे, वली श्रमारी मान्यता पूर्वाचार्योनी परंपरा सहित ले एम सिद्ध कर्युबे. पूर्वाचार्योनां वचन अनुसरीने चालवू थने तेमनां बचनने नगवान्नां वचन सरखां मानवां जोशए. एवी मान्यता नी सिद्धिमां अमारो मत सर्वने अनिमत पाउँ ! साधुता व्यवहारमा सामर्थ्य रडं वे आवश्यक धर्म व्यवहार ते होवाथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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