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________________ RSaareGORGRare RS. श्री धर्म प्रवर्तन सा२. ................ गणे चढे. अने आठमा गुणगणेथी रूपकश्रेणी मांगी है शुक्वध्यान योगे घातिकर्म श्रेणिगत हणी तेरमा गुणगणे अनंत चतुष्टय पामे, त्यां सुधी साधन शुद्ध व्यवहार कही. ए. वळी समनिरुढ नय पण त्यां कहीए. हवे आयुषना बेमे योगरोध करी अयोगी चौदमा गुणगणा अंते अघाति हे कर्म हणी कार्मण वर्गणा रहित थ पोतानी कायामां त्री जो नाग पोलाणनो डे ते घटामी बे नाग प्रमाण आत्मप्रदेशनो निविरुघन करी एक समये समश्रेणिए बीजा ६ श्राकाश प्रदेशने नहीं फरसतां लोकाय नागे सिद्ध क्षेत्रमा सादि अनंत नांगे स्थिर रहे तेमने सिद्ध नगवान कहीए. वळी त्यां एवंनत नय पण कहीए. यहां साधन शुद्ध व्यवहारनी पूर्णता थश् ए बीजो नेद कह्यो. हवे उपचरितानुपचरित व्यवहार नेदात् द्विविधी के० उपचरित व्यवहार अने अनुपचरित व्यवहार ए बे नेद कहेडे एटले शरीर जे पोतानी काया तथा पुत्रादिक, धनादिक वस्तु आत्मानी नथी. तेने उपचारे पोतानी कहीए. वळी साधुने शिष्यादिक तथा श्रावक, श्राविका त१ था उपकरण वळी पुस्तक पोथी, पोतानी काया, पोतीको गच्छ इत्यादि परवस्तुले तेने पोतानी कहेवी ते सर्वेने उ9 पचरित व्यवहार कहीए. हवे बीजो नेद ते जीवन अने कायानुं परिणामिक ॐ नावे एकपणुं थयुंडे पण वस्तु निन्न. कायाथी जीव जूदोडे. अने जीवथी काया जूदी, जीवतो अरूपी. का- ६ Rangories Browse Senarendrearanorano GRAMROGR Gregree (२८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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