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________________ MMY थैत्यवहन अधि४२. FRORAGIRAGMERREARLOMBAGMAGAR 9) चंद्रोदय बीज कला प्रकाश ॥ मिथ्या मोह तिमीर अणा लोग नाश, अनंतानु कषाय चौदय तास ॥३॥ देश ३ विरति आवे बार व्रत नावे, अप्रत्याख्यानी चोकमी त्यां अन्नावे॥ लीए सद्गुरु संगे महा व्रत रंगे, प्रत्याख्यानी चल त्यां हणे उमंगे ॥ ४ ॥ अप्रमत्त सदा प्रमत्तन कदाश, श्रेणिगत चेतन त्यां निर्मळाश् ॥ संजलना कषाय त्रणने नेदी बेदी, आशादि षट् कंद मूळथी उठेदी ॥ ॥ ५ ॥ वेद विषय अनिलाष अग्नि, समावे दे नावे गर्नवास रजनी ॥ रह्यो लोनाणु उदय गम दश्म, हणे वीर्यवंत करेॐ बाळी नस्म ॥६॥हएयो मोहराय सत्ताथी बेदाय, त्यां अशुद्ध परिणतीनो क्षय थाय॥ परिणति रागादि अनादिनी टाळी, वीतराग परिणति त्यां अजवाळी ॥ ७॥ यथाख्यात चारित्र संपन्न सामि, रमे निर्विकल्प ध्यानी अनामी॥वीत्यो राग वैरागी क्षीण मोह त्यागी, त्यां करे त्रण कर्म चकचूर नागी॥ ॥ सहे केवळनाण दर्शन अरिहंत, उद्योत करे १ व्यक्ति धर्म अनंत ॥ आयु जेटलुं तेटलो योगवास, बेदे . अंत मे करे जोग नाश ॥ ए॥ योगातित सिद्ध सम श्रेणी सधावे, पोंचे शीव धाम समय एक थावे॥ करे त्यां ६ स्थिति नंग सादि अनंत, समावे ज्योति ज्योत नाषे सिद्धंत ॥ १० ॥ श्रनुलव करी साधना सिद्धनावी, चेतन | @ सज कीधो स्वरूपे रमावी ॥ आतम नीरखी परखी मूळ , 5 रूप, ज्ञान शितळ वंदे सिद्धराय नूप ॥ ११ ॥ ARMIRRIGARomance rangeroGROGRAMAGRGARLordGARBAR ംരംഷ് Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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