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________________ S OR GORAGAR Grenormour RARGAGRAGIRRORGramma ચૈિત્યવંદન અધિકારી ॥ चैत्यवंदन ॥ ३ ॥ जुं ॥ ॥ देशी उपर प्रमाणे ॥ समकितनुं मूळ ज्ञान आराधी, समकित शुद्ध त्यां ज्ञान समाधि ॥ ज्ञान फळ वीरती फळमुक्ति, विवेके करो साधना शुद्ध युक्ति ॥१॥ अनुलव लावो अंतःमां रमावो, मनस्थिर त्यां उपयोग जमावो ॥ करे ते जूदाइ वस्तु उळखाइ, पुद्गल जीव नेदी उफार देखा ॥२॥ आतम परखो परमातम सरखो, सत्ता निन्न चिन मूरति नीरखो॥ तीहां चेतना वीर्य ते एकगमे ॥ करे ग्रंथि नेद त्यां समकित पामे ॥ ३ ॥ समकित मूळ वीरति जोग लेवो, चिदानंद वासी स्वरूपने सेवो ॥ स्वरूपे ज्ञान उपयोग मिलावो, तीहां गुणगण अप्रमत्त पावो ॥ ४ ॥ ज्ञान उपयोगथी अळगो चाले, तीहां प्रमत्त गुणगणुं खाळे ॥ करे तेज मंद ज्ञान गुण केरो, वधे तेज उपयोग नळतां जलेरो ६ ॥५॥ ए वीरति गण साधन पाया, तजी ग्रंथि अन्यंत्र निग्रंथराया ॥ करी साधना शुद्ध श्रेणि आरोहे, तिदण उपयोगे चरण स्थिर सोहे ॥ ६॥ अनुन्नवे आतम धर्म अनंतो, करे नेद बेद अनेद लहंतो ॥ निर्विकल्प नाव आतम पाया, शुद्ध परिणतिमां चेतन आया ॥७॥ एकत्व 9) वीतर्क शुक्ल ध्यान ध्याया, संन्नाववृत्ति चेतन रमाया॥पामे | नाण दर्शण केवल ताजा,सकल शिरोमणि अरिहंत राजा॥॥ अनंत धर्म शक्ति काळ अनादि, व्यक्ति ए लहे ते समय दिन आदि ॥ असंख्य प्रदेश निरावर्ण पाया, त्यां निर्वाण (२३१) xcomegreesex arodaraGarmaaraareGroGarnerBaMdarm Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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