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श्री धर्भ प्रवर्तन सा२. । पूर्णता न थर अने उडाश नजरे श्रावी, ते अवसरे लोनदशाने बुरी जाणी, स्नेह लत्तावेली मूळने उपामवाथी ए, कपिलनामा ब्राह्मण महा पुरुषोत्तमने, पोतीको सहज स्वन्नाव प्रगट थयो अने ज्ञानन्नानुं घटंतर वृत्तिए उदय । पाम्यो, लान होवाना कारणे पोते पोताथी बोध पामी
स्वयंबुद्ध थर कर्मने हणी सिद्धि वर्या; ए कथा उत्तरा& ध्ययनजीना आठमा अध्ययने सविस्तारे . एम धन . है कंचनादि वस्तुने अलच्छी माने , तृष्णा त्रुटी डे पोता- 6 पणानो ममत्व गयो बे, कदाच संसारमा रह्या डे अने ए लदमीनु रखोपुं करे , तेने निर्वाह प्रयोजन जाणे डे, बाधकता समजे बे, विरक्त चित्त बे, बोमवानी नावना नावे डे, डोमवानो अवसर श्च्छे डे, वळी नीजात्म सत्ताए ज्ञानादि गुण अव्याबाधादि पर्याय, पोतीका असंख्यात र प्रदेशे, प्रदेश प्रदेश प्रत्ये, अनंता अनंता, तद्रूप झायक. सब्धि, निर्मळ, निरंजन, अचळ, अविनाशी नावनी वस्तु
गते रही डे, तेने लक्ष्मी माने बे, वळी तेना अर्थी बे, ६ खपी डे, व्यक्तिनावे प्रगट करवाना उद्यमी बे, ब्राह्यऋद्धिनी वृद्धि अथवा हानि होवाथी, राग द्वेष न करे,
अने समनावे वर्ते. कदाच उद्वेग करे तो उत्कृष्ट पंदर १ दिवसना अनुमाने करे, नहितो तरतज ए वस्तु अस्थिर ,
बे, कोश्ने त्यां स्थिर थश्ने रही नथी. संजोगे श्रावीने १
प्राप्त थ अने विजोगे नाश थयो, एम हानि वृद्धि थाय है | तेनी साथे पोतापणो मानवो ते झानीने उपचार मात्र ने Pisaccharidrossessment
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