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________________ १ थया ले तेमने संतोषी कहीए अने इच्छा वांच्या जे जेने 8 तेने असंतोषी कहीए. कर्वा , गाथा. ॥ जहा लाहो तदा लोहो ॥ साहा लोहो विवढ५॥ 3 दो मास कणय कन्जंकोमीएविननई ॥१॥ अर्थः-जहा कहेतां जीहां, लाहो कहेतां लान एटले धन्य, धान्यादि वस्तुनी प्राप्ति थती जाय वृधि पामती जाय, तहा कहेतां तीहां, लोहो कहेतां लोन प्रगट थाय अने उराश नजरे श्रावे वली घणी तृष्णा थाय. लाहा हूँ कहेतां जेम जेम लान थतो जाय तेम तेम लोहो कहेतां । लोन, विवद्र कहेतां विशेष करीने वृद्धि पामे एटले दिप्त थाय, यथा अष्टांते, जेम अग्नि बळे ने तेमां काष्टनी पुरती करीए तेथी अग्नि शान्त न थाय, परंतु वृद्धि पामे ए अष्टांते, वस्तुना मळवाथी लोन न उपशमे. दोमास कणयं, कहेतां कपिल ब्राह्मण बेमासा सुवर्णतुं, कजं, कहेतां दान लेवा अर्थे राजा पासे गयो तेने राजए साचा बोलो जाणी प्रसन्न थश्ने कयु के, माग, मागे ते आपुं अने तारूं | दारिजपणुं श्राजथी दूर करूं, तारे जन्म पर्यंत फरीथी या- १ चना करवी न रहे; त्यारे कपिल ब्राह्मण विचारवा लाग्यो है के, केटयु मायुं तो, यावत् कोमी एवी, कहेतां एक क्रोम १ सोनेया मागु, एम विचार करतां पण, ननिह कहेतां निष्टार्थ है एटलुंज, एम तृप्त न थयो, एटले इच्छा वांच्दानी १ ALSOMEBACHEREIN TOGGARAGNIORGri Gr@ GARROR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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