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________________ RSPORAGARAMBIRenera SARAGRAMROORNAGARom श्री'घर्भ प्रवर्तन सार. ए ज्ञानयोग चोथा गुणगणाथी बारमा गुणगणाना अंत सुधी क्षय उपशम नावे कह्यो. तेना ग्राहको चोथा गुणगणाथी सातमा गुणगणा सुधी धर्म ध्यान ध्यावावाळाले. उपरांत शुक्लध्याननो पहेलो पायो आउमाथी दशमा सुधी ध्यानगत के उपरांत बीजो पायो ध्यानगत . पहेला पायामां नेद शान अनेनेदानेद शान बे, बीजा पायामां अन्नेद ज्ञान जे; रुपक श्रेणीना ग्राहको पहेला पायाना ज्ञान ध्याने मोहनो वळी अशुद्ध परिणतिनो दशमा गुणगणा अंते तय करी वीतराग परिणतिए बारमा गुणगणे यथाख्यात चारित्र पामे अने बीजा पायाना ज्ञान ध्याने ज्ञानावर्णी, दर्शनावर्णी अने अंतराय, ए त्रण कर्मनो 3 नाश करी, तेरमे गुणगणे अरिहंत पदे केवळझान, केवळ दर्शन, अने दायक नावनी पांच लब्धि पामी दायक लब्धिए पूर्ण थाय माटे दायक लब्धिनी, प्राप्तिनुं कारण यथास्थित क्षयनपशम नाव चोथा गुणगणाथी , अने चोथु गुणगाणु पामवानुं कारण मतियान, श्रुत अज्ञान, ए बेहु अज्ञानना क्षय उपशमनी वृद्धिनुं सवळापणे परिणमवु ते डे, परंतु विनंग नथी. वळी श्रेणी आरोहण कर, तेनुं कारण मतिश्रुत शान ठे; परंतु अवधि मनःपर्यव नथी | एम उपशम, दय उपशम, नावे, शांत थया, एवा झानी ६ तेमने आत्मानंदी कहीए. (४) . हवे पांचमुं लक्षण संतोष, एटले संतोष क्यारे जाहे पीए के जीहां श्च्छा वांच्छानो संनव नथी निर इच्छाए तृप्त Subungisorders nirnards www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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