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________________ Prer SearMORRORISMISAR श्री धर्म प्रवर्तन सार. पशमन्नावनी वृद्धिए जाणपणुं वृद्धि पामे, वळी निश्रा ते ? दीपक समकितनी अव्य चारित्रनी तपनी निश्रा पामे, यावत् स्वर्गसुखनो विन्नागी थाय, पण यथार्थ श्रद्धाना अन्नावे, ग्रंथिनेद करे नही अने समकित पण पामे नही एटले स्वअपेदाए हित न थयो, परंतु योग्य जीवने बोधि है बीज पमामवाना वळी मोदे पोचामवाना हेतु डे, माटे. शान्त ए पहेलो नेद कह्यो, हवे बीजो नेद ज्ञानयोग ते, ग्रंथिन्नेद कीयां, चोथा गुणगणाथी ज्ञानयोग कहीए अने निश्रा ते समकितनी, चारित्रनी, तपनी, वीर्यनी, एटले क्षयउपशमन्नावनी पांच लब्धिनी निश्रा कहीए, तेनो विवरो एम बे के समकित आश्रीने चोथु, पांचमुं अने वं सातमं ए चार गुणगणे दयउपशमन्नाव लाधे बे, वळी चारित्र आश्रीने पांचमुं, , सातमु, आठमुं अने नवमुं दशमुं, ए 3 गुणगणे दयउपशमन्नाव लाधे अने ज्ञान आश्री वळी दानादि पांच लब्धि आश्रीने, चोथु, पांचमुं, ब्लु, सातमुं, थाउमुं, नवम, दशमुं, अगीयारमुं अने वारमं ए नव गुणगणे क्षयउपशमन्नाव लाधे, ए दयउपशमन्नावे शान्तना नेद गुणगाणे गवेखीने करा, हवे तेनी स्थिति चोथा गुणगणानी अपेक्षाए, काळ आश्रीने, बासठ सागरोपम जारी अने जब आश्रीने सात आठ नवनी जाणवी, अने ६ पांचमा वळी हा सातमा गुणगणानी नेगी, देशे उणी, पूर्व क्रोमनी. जाणवी; ए उत्कृष्ट स्थिति कही अने जघ. . न्यथी. वळी सातमा गण उपरांत अंतर अंतर मूहुर्त्तनी (७४) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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