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________________ फु શ્રી ધર્મ પ્રવર્તન સાર, एम जाणी उद्वेगने उपशमावी, समजावे वर्ते, तेवा संतो-' पीने आत्मानंदी कहीएं. (५) ed as लक्षण श्रात्मरति एटले आत्मगणमांज प्रीतिरंग लाग्यो बे जेने, पटले रंग केवो लाग्यो बे के कंचननो पित वर्ण बे, चांदीनो धोळो वर्ण बे, परवाळानो रक्तवर्णवे, ए रंगने उतारीए, पलटावीए, तो पलटाय नहि. कारण के स्वाविक रंग बे, तेम श्रात्मानो जेवो स्वभाव तेवो रंग, चोथुं गुणाएं प्राप्त यतां अंशे अंशे चढतो गयो अने जेटलो स्वभाविक गुण प्रगट थयो एटलो उपाधि रंग उतरतो गयो. एम करतां करतां अनुक्रमे परिपूर्ण रंगतो राग द्वेष ने मोहना नावे, दिए मोह बारमुं वीतराग year पाम्यां कहीए, एटला सुधी न पहोंचे तेने तदनवे मुक्ति न मले, पण कायक समकितनी अपेक्षाए त्रीजे नवे ने बेटे चोथे नवे ए जीवो मोक्षगामी बे, वळी दय, उपशम समकित प्रतिपातिनी अपेक्षाए सातमा आठमा नवे ए जीवो मोक्षगामी बे. वळी प्रतिपाति क्षयउपशम, अने उपशम सम कितनी अपेक्षाए अर्ध पुगल परावर्त्तनी मांडेली कोरे ए जीवो मोक्षगामी बे. एथी अधिक काळ तो धिभेदी जीवो संसारमां न रहे: वळी रंग न उतरवानुं कथं ते, जेणे ग्रंथि नेद करेलो बे, ते अधि काळमां सज्ज थाय नहि अने मिथ्यात्वगुणठाणे जतां पण ए जीवो, द्रव्य सम किती बे, उपर मिथ्यात्वनुं दळ फरी वल्युं बे, ते विशुद्ध जावे उतरी जवाथी चोथे गुण ( ७८ ) " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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