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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. र वृत्तिए मिथ्यात्व प्रवर्त्तनमां . वळी अशुद्ध व्यवहारना
नेद सद्भूत, असनूत, संश्लेषित असंश्लेषित पूर्वे कह्या १ ते पण मिथ्यात्व प्रवर्तनमा डे ए नेद नय चक्रसारना अ६ नुसारे कह्या तेनो ए परमार्थ समजवो. हवेऽव्यगुण पर्या9 यना रासना अनुसारे नेद कह्या. तेने उसाववाने माटे , है पुनरपि नावार्थ कहे .
एक निज चेतन धर्म प्रवर्तन परमव्य संयोगादि अपेक्षा रहितपणे ते सद्भूत व्यवहार केवळझानी आत्मा 6 ते शुद्ध सद्भूत मतिज्ञानादि आत्मा ते अशुद्ध सद्भूत, , गुणपर्याय खन्नाव तन्मयी एक अव्यानुगत नेद बोलीए ते
सद्भूतनो नेद अर्थ डे, परद्रव्यनी परिणति निज द्रव्यमां उनळे तिहां असद्लूत व्यवहार जाणीए ते असद्भूत व्य
वहारनो नव प्रकारे उपचार जीव पुद्गल योगें थाय. द्रव्ये द्रव्योपचार, ॥१॥ गुणगुणोपचार, ॥२॥ पर्यायेपर्यायोपचार ॥३॥ द्रव्येगुणोपचार ॥ ४ ॥ द्रव्ये पर्यायोपचार ॥५॥ गुणेऽव्योपचार ॥ ६ ॥ पर्यायेंऽव्योपचार ॥ ७॥ गुणपर्यायोपचार ॥ ॥ पर्यायेगुणोपचार ॥ ए ॥ एम जीवनोपुद्गलमा अने पुद्गलनो जीवमां जेम घटे तेम एकनो उपचार करीए तेथी समजवामां आवे के उपचारे पोतानी वस्तु मानीए बीए पण पोतानी नथी. परवस्तु परपणे . अने निजवस्तु निजपणे जे एम उपचरित व्यवहारनुं ज्ञान १ यतां स्वपर निन्नता थाय. चेतन अचेतन मिश्रित लेते हैं जूदो देखाय. जमसत्ता, चेतनसत्ता जूदी जूदी समजाय ।
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