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________________ AAMAMANAN.........Any PRACTIOOres GR GROG GARGrana श्री धर्म प्रवर्तन सार. १ शंकित थाय आतमा, समकित शुद्ध विराजेरे ॥चंद्र प्रत्न @ जिन देशना ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥श्रद्धा कारण 9 सुणो देशना, स्थीर करी मन वच कायारे ॥मनन करोचिं- 0 तवन करो, न नूलो वचन गुरु रायारे ॥ चंद्र० ॥२॥ जीवस्वरूपने उळखो, पुद्गलमां ढंकाणोरे॥चिंत्वन शक्ति वीस्तरे, ए कारण मुख्य वखाणो रे ॥ चंद्र० ॥ ३ ॥ यथा & प्रवृत्ति प्रमुख सही, त्रण करण करी आवेरे ॥अंतर करणे . अनुन्नवे, जीव पुद्गल जिन्न नावेरे ॥ चंद्र०॥४॥ ग्रंथि नेद करे ते समे, वीर्य वृद्धि जोगरे॥झान ध्यान उपयोगशु, हणो मिथ्यात्व नाव रोगरे ॥ चंद्र० ॥ ५॥ बीज चंद्र सम श्रातमा, शुद्ध हुई नीज रूपरे॥प्रकाश घट अंतर ३ करे, चढती कळाए थाशे नूपरे ॥ चं० ॥ ६॥ एही चंद्र अन्न सेवीए, अंतर मंदिर स्थापी रे ॥शीव सुख आपे ततदणे, ज्ञान शीतळ घट व्यापी रे ॥ चंड० ॥ ७॥संपूर्ण. ॥ ॥ स्तवन ॥ ९ मुं॥ ___ कपुर हुवे अति उजळू जी ॥ ए देशी ॥ सुबुद्धि नाथ नवमा प्रजुजी, कांति फटक समान ॥ एक सत धनुष्य प्रमाण जी, काया बहु वळवान ॥ @ सोनागी जीन तुज गुणनो नहीं पार ॥शीव सुखनो दातार १सोनागीजीन, मारे अवलंबन आधार सोनागोजीन, तुज गुणनो नहीं पार ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ सुबुद्धि & वर्णन करुंजी, ज्ञान श्री तस नाम ॥ ते मे नीज देहनेजी, हे ग्रहे नाथ आतमराम ॥ सोलागीजीन० ॥ २॥ सुबुद्धिनाथ ६ Resosiaxonesia poro BCONG &GARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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