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________________ Sex Gre GARAM SARAPARISSAGACARE १ गुरु तत्व हवे वर्णवू, गुरुना गुण अनंत; g बहुश्रुत विण सद्गुरु नहि, समजो चतुर महंत॥३॥ जेने जे उपकारी बे, बोधी बोज दीये दान, हूँ ते तेनो गुरु जाणिये, कीजे तस बहु मान ॥४॥ 3 समकित दायक गुरु तणी, सदा सेवा करे एह; नव कोमाकोमी लगे (पण) बदलो न वळे तेह ॥५॥ ॥ ढाल बीजो ॥ ॥ देखो गति देवनी रे-ए देशी ॥ गुरु तत्व बीजो गुण निलोरे, जे श्रुत केवळी अणगार, केवळीने ए बेमां अंतर नहिरे, वृहत् कल्प नाष्ये साख निरधार, जगत गुरुवंदीएरे ॥ वंद्यां टळे सहि नवना, ए फंद, निमित्त हेतु पृष्टएरे ॥ ए आंकणी ॥ १॥ सद्3 गुरु नहि सर्व क्षेत्रे सदारे, श्रेष्टकाळे पण एम, आ दूषम पंचम काळमारे. कोइ अवसरे मील्यां करो अति प्रेम ॥जगत॥॥ विनय करो तनमनथी रे, गुरु रायना गुण गावो सार, आज्ञा ग्रही गुणवृत्ति करो रे, गुरु करुणा रस नंमार ॥ जगतः ॥३॥ उपदेश करे योग्य जाणीनेरे, सम जावे ए जीव अजीव, चेतना लक्षण जीव डेरे, रहित चेतना १ तेह अजीव ॥जगत॥॥ चेतना द्विविध जाणीयरे, उपयोग सामान्य विशेष, सामान्य दर्शन जाणीयेरे, ज्ञान उपयोग १ तेह विशेष ॥ जगत० ५॥ मनुष्यनी काया गत इंद्रि पांच है डेरे, शब्द, रूप, रस, गंध ने स्पर्श, मन नोमि उठो ६ Pokemon GrGroGorrenorama SareenarasRGASMOD Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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