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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. १ स्थिति दाखी, उत्कृष्ट देशे उणी पूर्व कोम नाखी, जघन्य ६ अंतरमुहुर्त एक राखी, एम ग्रंथ प्रकरणे बहुश्रुत साखी
॥ अहो० ॥ १ए ॥ आयुष्य अंते योग रोध ध्यावे, तिहां हे शैलेशी करण करी स्थिर थावे, अयोगी अंते अघाति चौ ७
क्षय पावे, आत्म असंख्य प्रदेश निर्मल नावे ॥ अहो॥ २०॥ एहि सिद्ध निवऽघन दोय नागे, बूटी कायाथी पो- ६ लनो एक नाग त्यागे, समश्रेणीये लोकंते समे एक लागे, है तिहां सादि अनंत काल स्थिति नांगे ॥ अहो० ॥२१॥ एम साध्य साधन नवि जे करशे, कारण बति पर्याय ऋजु सूत्र ग्रहशे, कार्य सामर्थ्य पर्याय शब्दथी वरशे, पूर्ण कार्य लोकते सिद्ध स्थिति करशे ॥ अहो० ॥ ॥ इहां एवं नूतनय एक कहीये, स्याद्वाद स्वरूप सिद्धगत लहीये, अव्यास्ति पर्यास्तिक पद ग्रहीये, उपयोगे समकित निर्मल तहीये ॥ अहो० ॥ २३ ॥ एम देवतत्वनी जे श्रद्धा करशे,
ते अल्पकाळे सिद्ध वधू वरशे, सर्व जीव समूदाय सत्ता १ ए सरखा, ज्ञानशीतल करी गुरु गम लेइ परख्या ॥ अहो० ॥ २४ ॥ संपूर्ण.
दुहा देव तत्व ए वर्णव्यो, साधन साध्य अनेद; धर्म स्व सत्ता जाणिये; नय पद नेदानेद ॥१॥ निजपर सत्ता जिन्नता, काळ अनादि सबंध; है पर नास्ति नावे रही, तजतां आत्म अबंध ॥२॥ Heaven azia 55
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