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________________ श्री धर्म प्रवर्तन सार. Gre GrGANGARG REMERGreASINESDAR GORAGRAGAT १ पोताना आत्मानो जाण, पण कहीए एम सूत्रमा परमा- १ त्मानुं तथा गणधर महाराजानुं वचन ले. तेने विचारी जुओ. एटले ज्ञानीनी ओळखाण थशे. ते ज्ञानीने साधु केहेवा. वळी कडं के अध्यात्मसार ग्रंथे पंदरमा योगाधिकारे,पाप करण मात्रानि मौनं विचिकित्स्या॥ अनन्य परमात्मास्यातूझान योगी भवेन्मुनिः॥३६॥ __अर्थः-हिंसा, मृषा, चोरी, मैथुन, परिग्रह, रात्रिनोजन ए बए पापरूप जे. वळी आश्रव बंधनुं कारण डे एम जाणी विरति करीए एटले तजीए. पण पोताना आत्माने जाएयो नथी त्यां सुधी “न मौनं विचिकित्स्या" कहेतां ए मुनि नथी. मुनिपद तो एथी जुदंडे, “ अनन्य परमात्मास्यात्" कहेतां कथंचित् एटले कर्मोपाधिनी E अपेक्षा न करीए तो पोतीको आत्मा तेज परमात्मा . है ज्ञानयोगी के तेने जे जाणे अनुन्नवे ते ज्ञानी ज्ञानयोगी के स्वस्वरूप खेल खेले स्वस्वरूपमा उपयोगे रमे तेने नावे- है न्मुनि केहेतां मुनि कहीए. वळी कडं डे समाधि शतके,उदो केवल आतम बोधदै। परमारथ शिव पंथ॥ , तामें जिनकुं मगनता। सोनाव निगरंथ अर्थः-केवळ कहेतां एक आत्म बोध जे आत्मज्ञान ने तेज परमार्थ कहेतां उत्कृष्ट अर्थ जे निज स्वरूप प्रत्यक्ष हे अनुन्नवज्ञान ते शिव कहेतां ज्यां उपजव नथी, विघ्नकर्ता है GAGAR GARAGNS (५३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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