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श्री घर्भ प्रवर्तन सार, जायरे ॥ प्राणीए० ३६ ॥ त्रस नाम कर्म उदय थकीरे ॥ ए न लहे स्थावर कायः पांच ॥ वाकी सवे गति त्रसबेरे ॥ तीहां उपजे तेमां नही खांचरे ॥ प्राणीए० ॥ ३७॥ वादर , नाम कर्म उदय थकीरे ॥ न लहे सूदम थावर पांच ॥ द्रष्टीगोचर काया कहीरे ते बादर नाम नही खांचरे ॥ प्राणीए० ३० ॥ पर्याप्ति नाम उदय थकीरे ॥ करे पुरी पोतानी जे होय॥ कर्ण लब्धि दोय लेदथीरे ॥ न मरे अ. पजत्तो कोयरे ॥ प्राणीए० ३ए। प्रत्येक नाम कर्म उदय
थकीरे ॥ बे निगोद गति होय बंध ॥ जीव जीवनी काया इजुदीरे ॥ ते प्रत्येक नाम संबंधरे ॥ प्राणीए० ४० ॥ स्थिर
नाम कर्म उदय थकीरे ॥ दाढ दंत हाम वांधो द्रढ ॥ नखसें हाम दंत एहनारे ॥ सर्व अवयव निश्चल गढरे ॥ प्राणीए० ४१ ॥ शुन्न नाम कर्म उदय थकीरे शुन कहीए उर्ध्व अंग ॥ अप्रिय न होवे कोश्नरे ॥ फर्स लाग्यां माने अती चंगरे॥ प्राणीए० ४२॥ सौजाग्य नाम कर्म उदय थकीरे ॥ उपकार विण वहन होय ॥ सगपण प्रिती संबंध विना
रे॥ जग वहन इष्ट लागे सोयरे ॥प्राणीए० ४३ ॥ सुस्वर 2 नाम कर्म उदय थकीरे ॥ कंठ शब्द मधुर ध्वनी होय ॥ हे सर्व लोक ग्रह एहनेरे ॥ श्रवण रस सुखदाइ सोयरे ॥ १॥प्राणीए० ॥ ४४ ॥ आदेयनामकर्म उदयथकीरे ॥ प्रमा
णीक पुरुष गणाय ॥ खंमीत वचन होवे नहीरे ॥ यथार्थ ) वचन पकमायरे ॥ प्राणीए० ॥ ४५ ॥ यशकीर्ति नाम उद| यथकीरे ॥ गाय गुण समुदाय जगजस ॥ ऋद्धि आमंबर HALEBRArora.
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