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________________ Poro GORGEOGRGOOGODDERGOOGr@SS TERRAGMEAGMCHANDRAMOMRAGARAGreg ६ कितनी प्राप्तिए सिद्ध गति पूर नथी, संसार गति ब्रमण चक्रनो मुख्य हेतु एक मिथ्यात्व . एम उपर कह्या प्र9 माणे अगीयार बोले करीने सहित होय तेने नवानिनंदी ६ कहीए, वळी पुद्गलानंदी पण कहीए, ते पुरुष विधि पूर्वक शुन क्रियानो प्रारंन करे; ते पण निष्फल जाणवो, कार्यनो साधक थाय नहि. ११ शहां नवानिनंदीनो अधिकार समाप्त थयो. हवे निश्चय नयनी मुख्यताए, धर्मप्रवर्तन कहे . है एटले निश्चयनयमां अष्टि करवा योग्य (प्रवेश करवाने योग्य ) कोण ले तो जे आत्मानंदी पुरुषोत्तम बे, तेज निश्चयनयमां दृष्टि करवा योग्य . हवे तेमनां सक्षण कहे इ, तेमां प्रथम लक्षण गंनिर होय, एटले हुं अल्प गुणवाळो बुं. एम घणा गुणे युक्त , तोपण पोतानी, ओग सने जोवावाला होय एटले जीहां सुधी दायक लब्धिनी १ पूर्णता निष्पन्न न थाय, तीहां सुधी पोतानी ओडास देखे एटले उपशम नाव, क्षय उपशम नावनी प्रगटताने न जुवे. प्रगटताने जोतां, महा पुरुषने पण मोह अंग आपे एटले खलना पामे . अने योगासने जोतां, वृद्धि पामे तेनुं कारण ए डे के ओगासने जोवु ए चारित्ररायने पो६ तानुं अंग , ते कारणे ओगसने जोतां निर्मोह वृत्ति थाय अने निर्मोह वृत्तिये गुण संपदा वृद्धि पामे. एम गुण रागी, गुणना लोनी घणा गुणवंता पण मोटपनी कालके ॐ मनकाय नहीं तेमने आत्मानंदी कहीए. १ (७०) agroBrowsexcomroor Greenaramaroord Ganee Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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