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________________ સ્તવન અધિકાર, HOM ॥ ते पलटावी स्वरूपे जोनीये रे लाल, त्यां घटतर अनुनय है आल्हादरे ॥हुं.॥नमि.॥॥ थाय वृद्धि क्षय उपशम ज्ञाननीरे लाल, वीर्य वृद्धि अनंतरे ॥ हुं० ॥ अनुन्नवे शुद्ध स्वरूपनेरे ६ लाल, लहे परम समाधि महंतरे ॥ हुं० ॥ नमिः ॥ ए॥ ६ उपाधि जोग सर्व बुटीयो रे लाल, हुवा निर्मळ गुण पर्यायरे से ॥ हुँ० ॥ उपयोगे प्रवृत्ति थरे लाल, त्यां परमानंद वरसायरे ॥ हुं० ॥ नमि० ॥ १० ॥ ए नेद ज्ञानयोग वर्णव्योरे लाल, क्षयउपशम नाव ज्ञानरे ॥ हुं० ॥ पर्यायार्थक नय , साधनारे लाल, द्रव्यार्थके एक तानरे ॥ हुँ ॥ नमि० ॥ ॥ ११ ॥ श्हां अनिन्न द्रव्य गुण पजवारे लाल, ज्ञान अनेद स्वरूपरे ॥ हुं० ॥ क्षय उपशम मोहनो त्यां बेदीयो रे लाल, उन्मूलन थाय मोहनूपरे ॥ हुं० ॥ नमि ॥ १५ ॥ अशुद्ध परिणति बेदी शुद्धमां रे लाल, चरण यथाख्यात वासरे ॥ हुं० ॥ वीतराग वीण मोह बारमेर लाल, त्यां त्रण कर्म बुटे पासरे ॥ हुँ० ॥ नमि० ॥ १३ ॥ केवलनाण १ दर्शण प्रगटेरे लाल, अरिहंत तेरमे वासरे ॥ दु० ॥ दान लान नोग उपनोगनोरे लाल, स्वरूपे वीर्य स्फुरणा तासरे ॥ ९० ॥ नमि० ॥ १४ ॥ ए परमानंद पद मोटकोरे लाल, आयुष अंते योग रोधरे ॥ हुं० ॥ सैलेशि करणे अकंपतारे साल, अयोगी अकर्मी दुबा सिद्धरे ॥ हुं० नमि० ॥ १५ ॥ ६ ज्योति स्वरूपी ए अरूपतारे लाल, अनंत गुण मणि खाणरे , 5 ॥हुं० ॥ अव्याबाध सुख अविनाशतारे लाल, ज्ञान शीतळ , 4 ए सिद्धनां वखाणरे ॥ ९० ॥ नमि० ॥१६॥ Hereasanase GrougrBroRSAGARGrenorar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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